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| 1. | नीलम का परिचय देते हुए बताइए कि उसके परिवार में कौन-कौन था? वह किस धोखे में अपना जीवन अभी तक व्यतीत कर रही थी? उसे इसका आभास कैसे हुआ? स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» नीलम की कहानी वास्तव में त्याग, बलिदान और संरक्षण जैसे पारिवारिक मूल्यों और भौतिकवादी संस्कृति के टकराव की कहानी है। इस कहानी की नीलम आज की भौतिकवादी दृष्टि के समक्ष स्वयं को अंतर्वंद्व में खड़ा पाती है। उसे गहरा आघात लगता है कि जिस परिवार के लिए वह आज तक खटती रही है, वह उसे केवल धनोपार्जन का एक माध्यम समझता रहा। कहानीकार की सारी संवेदना व सहानुभूति कथा-नायिका नीलम के साथ है। इसके साथ ही यहाँ आज के युग की उस अपरिहार्य प्रवृत्ति की ओर भी संकेत किया गया है, जिसमें हर कोई निरंकुश जीवन जीना चाहता है। इसी अंतर्वंद्व को पूरी कहानी में बार-बार संकेतित किया गया है। पिता के असमय स्वर्गवास के बाद घर का सारा दायित्व युवती नीलम के कंधों पर लाद दिया जाता है। माँ ने यह नहीं सोचा कि उसकी सबसे बड़ी बेटी अर्थात् नीलम का विवाह सबसे बड़ी प्राथमिकता है। वह तो केवल यह सोचती है कि घर का भरण-पोषण, बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और पारिवारिक दायित्वों का एकमात्र आर्थिक स्रोत नीलम ही है। इसलिए वह उसके बीतते यौवन के साथ-साथ उससे वीतराग होती गई। अपनी बेटी की इस भूमिका को कभी भी उसके पारिवारिक सुख के संदर्भ में नहीं परखा गया। नीलम अपने परिजनों के लिए बलि होती गई और जैसे ही उसके समस्त कर्तव्य पूर्ण हुए, घर का वातावरण बदल गया। घर में उसकी स्थिति एक अनचाहे व्यक्ति या सामान की हो गई। उसे घर से भगाने के लिए पहला अचूक प्रयास होने लगा। सुनियोजित योजना के अधीन उसके लिए विवाह प्रस्ताव लाए गए। परिवार के बोझ से थके बूढ़े-प्रौढ़ दूल्हे वर के रूप में प्रस्तुत किए जाने लगे। यहाँ नीलम का द्वंद्व देखिए – “पम्मी, मेरी उम्र चाहे जो भी रही हो, मेरे सपने अभी भी किशोर हैं। मेरे भाई लोग, जैसे एंटीक पीसेस मेरे सामने परोस रहे हैं, उनसे उनका कोई मेल नहीं है।” दुख यह है कि नीलम को समझने वाला कोई नहीं है। उसकी बहन भी उसे जिस-तिस को वर के रूप में अपनाने के लिए तर्क देती है और उसकी प्रौढ़ आयु का संदर्भ छेड़ती है तो वह कहती है – “समय से शादी नहीं हुई, यही तो परेशानी है पम्मी ! पति-पत्नी साथ-साथ बुढ़ाते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। उस लंबी यात्रा में इतनी सारी चीजें जिंदगी के साथ जुड़ जाती हैं कि उम्र का अहसास पीछे छूट जाता है। लेखिका ने नीलम के अंतर्वंद्व को अत्यंत गहराई से पहचाना है। जब उसे अपनी स्थिति का पता चलता है तो वह अंदर से टूट जाती है। संदर्भ लिखिए – “अल्का कहती है, हम तो जिंदगी को कभी ठीक से एनजॉय नहीं कर पाते। एक अनब्याही ननद का साया हमेशा हमारी खुशियों पर मँडराता रहता है।” नीलम भीतर-ही-भीतर टूट जाती है। उसे जीवन में कई अवसर मिले थे जब उसे प्रोन्नति के प्रस्ताव थमाए जा रहे थे। परन्तु वह इन्हीं परिजनों का सोचकर उन प्रस्तावों को ठुकरा देती थी। आज वह अपने वंद्व को छिपा नहीं रही। संदर्भ द्रष्टव्य है – “पम्मी, तुम नहीं जानती, अरमानों को दफ़न करना कितना असहनीय होता है। उन्हें वापस जिलाना तो शायद और भी पीड़ा देगा, और मुझे डर है कि अगर मुझे मजबूर किया गया, तो मैं सपनों के टूटे हुए सिरे को वहीं से उठाना चाहूँगी, जहाँ छोड़ था।” इस प्रकार वह अपनी नियति के विपरीत सिद्ध होने के परिणाम पर पीड़ित है। उसका वंद्व उसके अतीत और भविष्य के बीच खड़ा है। यही अतीत उसके भविष्य को वर्तमान के कटु यथार्थ से जोड़ते हुए उसे बस्तर की ओर निर्दिष्ट कर देता है। | |