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| 1. | निर्धन लोग ईद – त्यौहार कैसे मनाते हैं? ‘ईदगाह’ कहानी को दृष्टि में रखकर उत्तर दीजिये। | 
| Answer» ईदगाह कहानी के कहानीकार श्री प्रेमचंद है। इनका जन्म सन् 1880 में हुआ। इन्होंने एक दर्जन उपन्यास और तीन सौ से अधिक कहानियों की रचना की। त्यौहार मानव जीवन में खुशी और सजगता लाते हैं। खुशियाँ बाँटने में धनी और निर्धन का भेद – भाव नहीं। लेकिन अपने – अपने स्थाई के अनुसार वे त्यौहार मनाते हैं। ईद का मूलमंत्र यह है कि ईद केवल खुशी मनाने का नहीं बल्कि खुशियाँ बाँटने और लोगों को खुशी में शामिल करने का दिन है। खुशी में पूरे समाज विशेष रूप से उन लोगों को शामिल किया जाना ” चाहिए। जो इसे खुशी के रूप में मनाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए ईदगाह कहानी में हामिद निर्धन होने पर भी अधिक प्रसन्न था। ईद का त्यौहार माने नये कपडे पहनकर खुशबू लगाकर ईदगाह के लिए घर से निकलना, नमाज़ के बाद एक-दूसरे से गले मिलना, ईद की मुबारक बात देना, अपने परिवार और मित्रों के साथ सैर – सपाटे पर निकल जाना ईद के दिन की यह परंपरा वर्षा से नहीं। सदियों से चला आ रहा है। कहानी में भी हामिद नमाज़ के बाद अपने मित्रों से गले मिलकर, सैर – सपाटे पर निकले तो उसके मित्र तरह – तरह के खिलौने खरीदते हैं। यह त्यौहार भाईचारे का प्रतीक है। सभी इस दिन गले मिलते हैं। शतृता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस दिन न कोई छोटा होता है न बडा, न कोई धनी होता है। और न निर्धन। इस दिन बच्चे अपने निर्धनता पर ख्याल नहीं रखते । लेकिन हामिद जैसे कुछ बच्चे अपने निर्धनता को ख्याल में रखकर खेल – तमाशों तथा झूले का आनंद लेना, खिलौने खरीदना और भांति – भांति की मिठाइयों का आनंद लेते हैं। नये वस्त्र सिलवाते हैं। ईद भ्रातृभाव का त्यौहार है। ईद-उल-फ़ितर के दौरान नमाज़ पढ़ने के बाद मीठी सेवाइयाँ खाई जाती हैं। इसलिए हामिद की दादी घर में कुछ पकाने का सामान न होने से सेवाइयाँ लाने के बारे में सोचती है। ईद के दिन हर मुसलमान ईदगाह जाने के पहले “फ़ित्रा “के रूप में एक निश्चित राशी अल्लाह के राह में खर्च करता है ताकि निर्धन व असहाय लोग भी ईद के खुशियों में शामिल हो सकें। | |