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नियोजन अर्थात् क्या ? नियोजक के लक्षणों की चर्चा कीजिए ।

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भूमि, पूँजी, श्रम के संयोजन का कार्य अर्थात् नियोजन । नियोजन करनेवाले व्यक्ति को नियोजक कहते हैं । नियोजक उत्पादन के क्षेत्र में कप्तान की भूमिका निभाता है । अर्थात् उत्पादन के नेता के रूप में नियोजक का स्थान है । नियोजक के बिना उत्पादन कार्य संभव नहीं बनता । क्योंकि उत्पादन संबंधी सभी निर्णय वह स्वयं ही करता है । उत्पादन कार्य कहाँ शुरू करना, किस वस्तु का, किस पद्धति से, कितनी मात्रा में उत्पादन करना ? उत्पादन प्रक्रिया के सभी प्रकार की अनिश्चितताओं का वहन उसका उत्तरदायित्व बनता है । जिस प्रकार किसी समूह को दिशा कोई एक नेता, समुद्र में जहाज का संपूर्ण संचालन कप्तान करता है उसी प्रकार समुद्र समान अर्थतंत्र की विशाल स्पर्धावाले बाज़ार में वह अपनी उत्पादन इकाई का संचालन करता है । इसीलिए उसे उत्पादन का कप्तान कहते हैं । नियोजक को कप्तान की उपाधि देने के लिए उसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए ।

नियोजक के लक्षण :

(1) नियोजक उत्पादन का नेता है : नियोजक की अनुपस्थित में उत्पादन लगभग असंभव हो जाता है । नियोजक उत्पादन के अन्य तीन साधनों को एकत्रित करके उसका सुचारू रूप से समायोजन करता है । उत्पादन की समस्त प्रक्रिया ठीक ढंग से चले इसका वह निरन्तर ख़याल रखता है । उत्पादन संबंधी रोज़मर्रा के निर्णय भी नियोजक ही लेता है । इसी कारण नियोजक को उत्पादन का नेता अथवा कैप्टन कहा जाता है ।

(2) नियोजक साधन संयोजक है : उत्पादन के अन्य तीन साधन, भूमि, श्रम एवं पूंजी अलग-अलग स्थान पर बिखरे हुए होते हैं । इन साधनों को उचित स्थान एवं समय पर इकट्ठा करने का कार्य नियोजक करता है । भूमि, श्रम एवं पूँजी का इस प्रकार समायोजन करता है कि उत्पादन खर्च कम से कम हो उपरोक्त तीनों साधनों को कितना बदला देना यह भी नियोजक निश्चित करता है । नियोजक इन साधनों के कार्य पर देखरेख भी रखता है ।

(3) नियोजक उत्पादन से सम्बन्धित तमाम निर्णय लेता है : नियोजक उत्पादन से संबंधित तमाम निर्णय अपनी सूझबूझ से लेता है । किस वस्तु का उत्पादन करना, कितनी मात्रा में उत्पादन करना, कब उत्पादन करना, किसके लिए उत्पादन करना, किस पद्धति से उत्पादन करना, वस्तु की क्या कीमत रखनी ? आदि सभी प्रकार के निर्णय नियोजक को स्वतंत्र रूप से लेने होते हैं । नियोजक का मुख्य हेतु कम से कम खर्च करके अधिक से अधिक उत्पादन करने का होता है । इस प्रकार नियोजक को उत्पादन सम्बन्धी तमाम निर्णय अपनी सूझबूझ के साथ एवं स्वतंत्र रूप से लेने होते हैं ।

(4) नियोजक अनिश्चितताओं का सामना करता है : नियोजक को समस्त उत्पादन प्रक्रिया दरम्यान अनेक प्रकार के जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है । कुछ जोखिमों का बीमा करवा कर उन्हें टाला जा सकता है, परन्तु कुछ जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता । जिन जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता वे अनिश्चितता कहलाते हैं । आग, चोरी, लूट, आदि से होनेवाले नुकसान को बीमा करवाकर टाला जा सकता है । नियमित रूप से बीमा कंपनी में प्रीमियम भरकर इस प्रकार की घटनाओं से होनेवाले नुकसान से बचा जा सकता है । ऐसी दशा में नुकसान का संपूर्ण दायित्व बीमा कंपनी का होता है ।

नियोजक इस सम्बन्ध में निश्चित रहता है । परंतु दूसरी ओर कुछ जोखिम ऐसे होते हैं जिनका बीमा नहीं करवाया जा सकता । उदा. वस्तु का उत्पादन होने के पश्चात् वस्तु की कीमत में गिरावट तो नहीं आ जाएगी, उत्पादन आरंभ करने के पश्चात् उत्पादन के साधनों की कीमत तो नहीं बढ़ेगी, उत्पादन खर्च तो नहीं बढ़ेगा, सरकार की नीति परिवर्तन तो नहीं होगा आदि प्रश्नों को नियोजक को झेलना ही होता है । ये सारी बातें अनिश्चित होती हैं । इन अनिश्चितताओं का नियोजक को वहन करना ही पड़ता है । इनका बीमा नहीं करवाया जा सकता । इस प्रकार नियोजक उत्पादन प्रक्रिया से संबंधित तमाम अनिश्चितताओं का वहन करता है । उत्पादन के अन्य तीन साधनों को इस प्रकार की अनिश्चितता का वहन नहीं करना पड़ता ।

(5) नियोजक नवसंशोधन करता है : नियोजक हमेशा नई-नई वस्तु की खोज करता रहता है । नई वस्तुओं की खोज से ग्राहक विविध वस्तुओं का उपभोग कर सकता है । नई खोज से नियोजक के लाभ में वृद्धि होती है । लाभ में वृद्धि होने से नियोजक और नवसंशोधन करने के लिए प्रेरित होता है । अमेरिका जैसे पूँजीवादी देश में नवसंशोधन के परिणामस्वरूप नई-नई वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती है ।

(6) नियोजक उत्पादन की नई पद्धति का शोधनकर्ता है : नियोजक अपने व्यवसाय के विकास के लिए निरंतर सतर्क एवं जागरुक रहता है । नियोजक हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि वह जिस वस्तु का उत्पादन करे वह अन्य प्रतिस्पर्धियों की तुलना में सस्ती एवं अच्छी हो । अपनी वस्तु की गुणवत्ता सुधारने एवं कीमत कम करने की कोशिश में वे नई-नई उत्पादन पद्धति की शोध करते हैं । ऐसा करने से उपभोक्ताओं को भी अच्छी वस्तुएँ उचित कीमत पर उपलब्ध होती है ।

(7) नियोजक का पारिश्रमिक या बदला निश्चित नहीं होता : उत्पादन के अन्य तीन साधनों को मिलनेवाला बदला पहले से निश्चित होता है । भूमि को किराया, पूँजी को ब्याज एवं श्रमिक को मिलनेवाला वेतन पहले से ही सुनिश्चित होता है । नियोजक को मिलनेवाला बदला अथवा पारिश्रमिक पहले से निश्चित नहीं होता । हमने ऊपर देखा कि नियोजक जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना करता है । इन जोखिम एवं अनिश्चितताओं के बदले में नियोजक को जो भी मिलता है वह नियोजक का लाभ अथवा हानि है । परंतु यह निश्चित नहीं है कि नियोजक को कितना लाभ होगा या कितनी हानि होगी । नियोजक को असामान्य लाभ (Super Normal Profit), सामान्य लाभ (Normal Profit) या फिर हानि (Losses) भी उठानी पड़ सकती है । इस प्रकार नियोजक को मिलनेवाला बदला अथवा पारिश्रमिक पहले से निश्चित नहीं होता ।

(8) नियोजक शेष आय का अधिकारी है : नियोजक को व्यवसाय की अनिश्चितताओं एवं जोखिमों का सामना करने के कारण लाभ प्राप्त होता है । परंतु यह लाभ निश्चित नहीं होता । उत्पादन के अन्य तीन साधनों को उनका बदला देने के पश्चात् जो कुछ शेष रहता है, वह नियोजक का लाभ है । नियोजक को कई बार लाभ के बजाय हानि भी उठानी पड़ सकती है । उदा. बॉलपेन बनाने की एक फैक्टरी में प्रतिमाह 10,000 बॉलपेन का उत्पादन होता है । यदि बॉलपेन की एक इकाई की कीमत 5 रुपये हो तो नियोजक की कुल आय 50,000 रुपये होगी । मानलीजिए इन 10,000 इकाईयों का उत्पादन करने में भूमि को 10,000 रु. किराया, पूंजी पर 5,000 रु. ब्याज एवं श्रमिकों को 15,000 रु. वेतन चुकाना पड़ता है तो कुल खर्च 10,000 रु. + 5,000 रु. + 15,000 रु. = 30,000 रु. होता है ।

किरायां + ब्याज + वेतन
यहाँ पर नियोजक की कुल आय 50,000 रु. है ।
कुल आय = उत्पादन × कीमत
10,000 × 5 = 50,000 रु.
कुल आय – कुल खर्च = कुल लाभ
50,000 रु. – 30,000 रु. = 20,000 रु.

इस प्रकार उत्पादन के अन्य तीन साधनों को चुकाने के पश्चात् जो कुछ भी शेष रहता है वह नियोजक का लाभ है । इसमें कमी-वृद्धि होने की संभावना निरंतर रहती है ।

(9) नियोजक अर्थतंत्र में गतिशीलता लाता है : देश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवसंपत्ति का उपयोग करके नियोजक उत्पादन प्रक्रिया में गतिशीलता प्रदान करता है । बेकार पड़े हुए एवं निष्क्रिय साधनों का उचित समायोजन करके उत्पादन प्रक्रिया की व्यवस्था करता है । नियोजकों के बीच उत्पादन के साधनों तथा बिक्री के सम्बन्ध में सतत जागरूकता रहती है । इस प्रकार नियोजक अधिक लाभ, अधिक आय प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं जिसे अर्थतंत्र को वेग मिलता है ।

(10) नियोजक कुशाग्र बुद्धिवाला होता है : नियोजक का कार्य कठिन है । उत्पादन संबंधी तमाम निर्णय लेने में नियोजक को धैर्य, संयम, विवेक एवं सूझबूझ का सहारा लेना पड़ता है । नियोजक का दूरदर्शी होना भी अति आवश्यक है । भविष्य में उसकी वस्तु की क्या माँग होगी, सरकार की नीति में परिवर्तन होने पर उसके लाभ में किस प्रकार का परिवर्तन होगा आदि के बारे में निरंतर सोचते रहना पड़ता है । संक्षेप में नियोजक कुशाग्रबुद्धि एवं धैर्यवाला होना चाहिए ।



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