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पद का भावार्थ लिखें:मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।ओढि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी ॥२॥ |
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Answer» भावार्थ : प्रस्तुत सवैये में एक गोपी दूसरी गोपी (सखी) से कहती है कि मैं अपने प्रिय कृष्ण को पाने के लिए उनकी इच्छानुसार सभी स्वाँग करने के लिए तैयार हूँ। कवि रसखान वर्णन करते हैं – मोर-पंख वाले मुकुट (किरीट) को सिर पर धारण करके, गुंजों (रत्नों) की माला गले में पहनूंगी। पीताम्बर ओढ़कर, हाथ में लकुटिया लेकर वन में गौओं के संग ग्वालिनी के साथ फिरूँगी। परन्तु कृष्ण के अधरों पर सुशोभित होने वाली वंशी को अपने होठो पर नहीं रदूंगी क्योंकि उनका यह विश्वास था कि कृष्ण हमारी अपेक्षा इस मुरली को अधिक प्रेम करते हैं। तथा यह हमसे अधिक सौभाग्यशाली है, हर समय कृष्ण के अधरों का प्यार पाती रहती है। इसलिए गोपियाँ इससे सौतिया डाह करती हैं। अतः वह सब कुछ करने को तैयार हैं, केवल मुरली को धारण करना नहीं चाहती। |
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