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फ्रांस का मध्यम वर्ग तत्कालीन व्यवस्था से क्यों असन्तुष्ट था? स्पष्ट कीजिए।

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तत्कालीन फ्रांस के मध्यम वर्ग में लेखक, डॉक्टर, वकील, जज, अध्यापक और असैनिक अधिकारी जैसे शिक्षित व्यक्ति तथा व्यापारी, बैंकर और कारखाने वाले धनी व्यक्ति सम्मिलित थे। समाज में इस वर्ग का आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व था। मध्यम वर्ग उन लोगों का अग्रगामी था, जिन्होंने 19वीं सदी में आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

मध्यम वर्ग तत्कालीन व्यवस्था से निम्न कारणों से असन्तुष्ट था-

(i) कुलीन-वर्ग के साथ ही तत्कालीन शासन-पद्धति से भी मध्यम-वर्ग के औद्योगिक एवं व्यावसायिक अंग को शिकायत थी। समाज का यह वर्ग मात्र एक उद्देश्य लेकर चल रहा था–भौतिक सम्पत्ति की वृद्धि; किन्तु तत्कालीन शासन उसके इस उद्देश्य की पूर्ति में अपनी गलत नीतियों के कारण बाधक सिद्ध हो रहा था।
(ii) मध्यम-वर्ग का बुद्धिजीवी भाग आदर्श भावना से भी प्रेरित था। यह आदर्श था विवेक एवं बुद्धि पर आधारित समाज की संरचना जिसमें सभी कुछ तर्कसंगत हो।
(iii) इतिहास में व्यापारियों-उद्योगपतियों के ये समूह बिलकुल नए थे, किन्तु अमेरिका के फ्रांसीसी उपनिवेशों से व्यापार करने के कारण ये बहुत धनी हो गए थे और इनका महत्त्व बहुत बढ़ गया था। इनमें से कुछ ने जमीन खरीद ली थी और उनके पास बड़ी-बड़ी जमींदारियाँ हो गई थीं। इन व्यक्तियों के पास पर्याप्त धन था, इसलिए राज्य, पादरी और अभिजात-वर्ग सभी इनके ऋणी थे।
सामाजिक दृष्टि से वह स्तर पर आधारित श्रेणीबद्ध समाज के विरोधी न होकर समर्थक ही थे और उनकी महत्त्वाकांक्षा थी कि सामाजिक सीढ़ी की ऊँची पदान पर उन्हें स्थान मिले किन्तु रक्त के आधार पर श्रेणीबद्ध फ्रेंच समाज में कुलीन-वर्ग ने उस स्थान से उन्हें वंचित कर रखा था। इस प्रकार 18वीं शताब्दी का फ्रेंच बुर्जुआ (मध्यम-वर्ग) अपने को एक अजीब स्थिति में पाता था। उसके पास धन था, उसके पास  योग्यता थी किन्तु इस धन और योग्यता के अनुरूप समाज में प्रतिष्ठा नहीं थी, सरकारी पद नहीं थे। इस विषमता को तभी दूर किया जा सकता था जब सामंतीय समाज के ढाँचे को नष्ट कर दिया जाए।



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