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प्राचीन भारत का धातु विद्या में योगदान समझाइए ।

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प्रस्तावना: प्राचीन भारत में हमारे महान ऋषियों ने विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य विरासत विश्व को दी है, जो हमारे लिए गौरव की बात है ।

धातुविद्या:

  • प्राचीन काल से ही भारत के लोग धातुविद्या को अपने व्यवहारिक जीवन में उपयोग करते है ।
  • प्राचीन भारत में धातुविद्या के क्षेत्र में अद्वितीय सिद्धियाँ प्राप्त की थी । उदाहरण स्वरूप में सिंधुघाटी से प्राप्त धातु की नर्तकी की प्रतिमा, तक्षशिला से प्राप्त हुई ।
  • कुषाण राजाओं के समय की भगवान बुद्ध की प्रतिमाएँ, चोल राजाओं के समय तैयार हुई धातु शिल्प, चैन्नई के संग्रहालय में रखी गयी अंतरराष्ट्रीय प्राप्त नृत्यकला का उत्कृष्ट नमूना महादेव नटराज का शिल्प है ।
  • एक अन्य शिल्प धनुर्धारी श्रीराम का शिल्प भी चैन्नई के संग्रहालय में रखा गया है ।
  • इसके अलावा कलात्मक देवी-देवता, पशु-पक्षी तथा सुपारी काटने की सरौंतियाँ आदि बनाई जाती थी । ये सभी महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है ।
  • इन धातुओं को बनाने की परंपरा दसवी से ग्यारहवी सदी में शुरू हुई थी ।


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