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Answer» भारत में प्राचीनकालीन शिक्षा मुख्य रूप से धर्म प्रधान शिक्षा थी तथा शिक्षण का उद्देश्य मुख्य रूप से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास ही था परन्तु इस काल में भारत में व्यावसायिक शिक्षा का भी प्रचलन था। प्राचीनकालीन व्यावसायिक शिक्षा का सामान्य विवरण निम्नलिखित है– 1. पुरोहित शिक्षा-प्राचीन काल में केवल ब्राह्मण पुत्रों को ही पुरोहितीय शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। उन्हें, यज्ञ, हवन, बलि आदि विभिन्न प्रकार के संस्कार सम्पन्न कराने की शिक्षा दी जाती थी। विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न पुरोहितों की आवश्यकता पड़ती थी। प्रत्येक कार्य की शिक्षा के लिए पृथक् प्रशिक्षण केन्द्र की व्यवस्था होती थी। | 2. सैन्य शिक्षा- क्षत्रियों को सैन्य शिक्षा दी जाती थी। इसके अन्तर्गत अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग, रथों, घोड़ों, हाथियों आदि का प्रयोग करने की शिक्षा सम्मिलित थी। उस समय ऐसी शिक्षा संस्थाओं का अभाव था जो कि पूर्णतया सैन्य शिक्षा बालकों को दें। राज्य सेनाओं से अवकाश प्राप्त सैनिकों द्वारा सैन्य शिक्षा दी जाती थी। 3. कृषि और वाणिज्य की शिक्षा-वैश्यों के लिए कृषि एवं वाणिज्य की शिक्षा की व्यवस्था थी। इसके अन्तर्गत कृषि, वाणिज्य, भूगोल, भाषा, गणित, व्यापार आदिका ज्ञान प्रदान किया जाता था। प्रारम्भ में पिता अपने पुत्रों को इस प्रकार की शिक्षा देते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह कार्य शिक्षकों द्वारा किया जाने लगा। 4. चिकित्साशास्त्र की शिक्षा- प्राचीनकालीन भारतीय शिक्षा के अन्तर्गत चिकित्साशास्त्र की शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था थी। इस काल में कुछ विशेषज्ञों द्वारा चिकित्साशास्त्र तथा ओषधिशास्त्र का व्यवस्थित ज्ञान इच्छुक छात्रों को दिया जाता था। इस वर्ग की शिक्षा के अन्तर्गत मुख्य रूप से रोग-निदान, ओषधि-निदान, शल्य-क्रिया, सर्प-दंश, अस्थि ज्ञान तथा रक्त-परीक्षण आदि की शिक्षा प्रदान की जाती थी।
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