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प्राचीनकालीन भारतीय शिक्षा के स्वरूप का उल्लेख कीजिए।

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प्राचीनकाल में शिक्षा का तात्पर्य उस अन्तज्यति एवं शक्ति से लगाया जा जाता था, जिसके द्वारा मानव का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास हो सके। इस काल में न केवल शिक्षा, ‘अपितु जीवन का प्रत्येक क्षेत्र; जैसे–राजनीतिक, सामाजिक तथा अर्थव्यवस्था आदि धर्म से प्रभावित था, इसलिए प्राचीन भारतीय शिक्षा भी धार्मिक भावना से ओत-प्रोत थी। प्राचीन भारतीय शिक्षा के स्वरूप को स्पष्ट करने वाले मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं

⦁    प्राचीन काल में शिक्षा धर्मप्रधान थी, इसलिए शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक था।
⦁    शिक्षा व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर आधारित थी।
⦁    शिक्षा की प्राप्ति के लिए इन्द्रियों का संयम करना होता था और ब्रह्मचर्य का पालन भी अनिवार्य
था।
⦁    शिक्षा में मनन और स्मरण की बहुत अधिक महत्त्व था।
⦁    प्रत्येक वर्ग और वर्ण के बालकं की विद्या का प्रारम्भ 5 से लेकर 8वर्ष की आयु के बीच में हो जाता था।
⦁    शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिष्य को गुरु के आश्रम में जाना होता था और वहाँ परिवार के सदस्य के रूप में उसे रहना पड़ता था।
⦁    विद्याध्ययन करने के लिए गुरुजन अपने आश्रम नगर के कोलाहल से दूर बनाते थे।
⦁    शिक्षा की प्राप्ति में दैनिक अभ्यास और दिनचर्या का निर्वाह बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता था।
⦁    विद्यार्थियों में अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए अच्छे वातावरण का निर्माण किया जाता था।
⦁    शिक्षा में लोकतन्त्रीय आदर्श का पालन करने के लिए छात्रों में भेद-भाव नहीं रखा जाता था। राजा और रंक दोनों के बालक साथ-साथ पढ़ते थे।



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