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प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहितमल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर कौन से हैं ?

Answer» प्राथमिक वाहितमल उपचार-इस वाहित मल से बड़े-छोटे कणों का निस्यंदन (फिल्ट्रेन) तथा अवसादन (सेडीमेंटेशन) द्वारा भौतिक रूप से अलग कर दिया जाता है। इन्हें भिन्न-भिन्न चरणों में अलग किया जाता है। आरंभ में तैरते हुए कूड़े-करकट को अनुक्रमिक निस्यंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद शिंतबालुकाश्म (ग्रिट) मृदा तथा छोटे पुटिकाओं (पेबल) को अवसाद द्वारा निष्कासित किया जाता है । सभी ठोस जो प्राथामिक आपंक (स्लज) के नीचे बैठे कण हैं, वह और प्लावी ( सुपरनेटेड) बहि:स्राव ( इफ्लूएंट) का निर्माण करता है। बहि:स्त्राव को नि:सादन (सेंटरलिंग) टेंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
द्वितीयक वाहित मल उपचार-प्राथमिक बहि:स्नाव कोबड़े वायवीय टैंकों में से गुजारा जाता है। जहाँ यह लगातार यांत्रिक रूप से हिलाया जाता है और वायु इसमें पंप किया जाता है। इससे लाभदायक वायवीय सूक्ष्मजीवियों की प्रबल सशक्त वृद्धि ऊर्णक के रूप में होने लगती है। वृद्धि के दौरान यह सूक्ष्मजीव बहिःस्त्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की प्रमुख भागों की खपत करता है। (बी.ओ.डी. ऑक्सीजन) की मात्रा को घटाने लगता है यह (B.O.D.) ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है, जो जीवाणु द्वारा एक लौटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत कर उन्हें ऑक्सीकृत कर दे। वाहितमल का तब तक उपचार किया जाता है, जब तक बी.ओ.डी. घट न जाए।


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