1.

प्रस्तुत पद्यांश में लक्ष्मण हँसकर व्यंग्य करते हुए कोमल वाणी में कहते हैं- अहो, मुनीश्वर! आप स्वयं को महान योद्धा मानते हैं । मुझे बार- बार कुल्हाड़ी दिखाते हैं तथा फूँक से पहाड़ उडाना चाहते हैं । यहाँ कोई कुम्हड़े के छोटे-से फल की भांति कमज़ोर या निर्बल नहीं है जो तर्जनी उँगली को देखकर ही मर जाए । मैंने जो कहा वह आपकी कुल्हाड़ी और धनुष -बाण को देखकर अभिमान के साथ कहा। भृगुवंशी समझकर आप जो कुछ भी कह रहे हैं मैं सब अपना क्रोध रोककर सह रहा हूँ। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ आदि पर वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता क्योंकि इनसे हारना अपयश और इन्हें मारना पाप होता है । इसलिए यदि आप मारते हैं तो आपके पैर पड़ना चाहिए। आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है अतः धनुष -बाण और कुल्हाड़े को तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं । आपके धनुष - बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने यदि कुछ अनुचित कहा हो तो हे धैर्यवान मुनि! आप मुझे क्षमा कर दीजिए । यह सुन भृगुवंशमणि परशुराम क्रोधित हो गंभीरता से बोले ।प्रस्तुत पद्यांश में अनुप्रास, यमक, उपमा और रूपक में से कौन-कौन से अलंकार प्रयुक्त हैं? पद्यांश से इनके उदाहरण भी ढूँढ़कर लिखिएअलंकार=उदाहरण=please please answer fast please​

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SORRY, COULD not UNDERSTAND what you MEANT



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