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प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया (immune response) का विस्तार से वर्णन कीजिए।या प्रौढ मानव में T तथा B-लिम्फोसाइट्स कहाँ बनते हैं? T एवं B-लिम्फोसाइट्स के परिपक्वन से आप क्या समझते हैं?या प्रतिरक्षण तन्त्र से आप क्या समझते हैं? प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के दो प्रमुख प्रकार बताइए।या सेल्फ एवं नॉन-सेल्फ की पहचान के संदर्भ में, प्रतिरक्षा तंत्र की विशेषताएँ लिखिए। या प्रतिरक्षण तन्त्र क्या है? प्रतिरक्षण प्रतिक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। 

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प्रतिरक्षण तन्त्र 

अनेक अंग हमारे शरीर में सभी प्रकार के रोगोत्पादक जीवों अर्थात् रोगाणुओं और प्रतिजनों के कुप्रभाव का प्रतिरोध करके समस्थैतिकता बनाए रखने के लिए एक तंत्र की रचना करते हैं, जिसे प्रतिरक्षण तन्त्र कहते हैं।

प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया 

प्रतिरक्षी प्रतिक्रियाएँ प्राणियों में एण्टीबॉडीज का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती हैं। इसके लिए रुधिर वे लसीका में पाये जाने वाले लिम्फोसाइट्स शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं या उनके एण्टीजन के प्रति सुग्राही हो जाते हैं और बाहरी जीवों (रोगाणुओं) को पहचानकर उनको नष्ट करके उनसे जीवनभर सुरक्षा प्रदान करते हैं। इस प्रकार प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं –

1. आक्रामक की पहचान करना – प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया का पहला और सबसे प्रमुख कार्य है। आक्रामक की पहचान करना। प्रतिरक्षी तन्त्र की लिम्फोसाइट्स शरीर में आये बाहरी पदार्थों व रोगाणुओं को पहचानने और उनको नष्ट करने का कार्य करती हैं। यह कार्य T और B लिम्फोसाइट्स करती हैं। 

2. आक्रामक से बचाव या एण्टीजन को नष्ट करना – एण्टीबॉडीज निम्नलिखित चार प्रकार से बाह्य रोगाणुओं व एण्टीजन को नष्ट करते हैं

1. निष्प्रभावी करके – एण्टीबॉडीज विषाणुओं से चिपककर उनके चारों ओर एक आवरण – सा बना लेती हैं जिससे विषाणु कायिक कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली से नहीं चिपकने पाते हैं और उनमें प्रवेश नहीं कर पाते हैं। इसी प्रकार एण्टीबॉडीज जीवाणुओं के विष को भी निष्प्रभावी कर देती हैं। 

2. समूहन – अकेली एण्टीबॉडी कई एण्टीजन्स से जुड़कर उनको समूह में एकत्र कर देती है। बाद में इन समूहों को मैक्रोफेज कोशिकाएँ निगलकर नष्ट कर देती हैं। 

3. अवक्षेपण – एण्टीबॉडीज विलेय एण्टीजन्स से जुड़कर उनको अविलेय बना देती हैं। फिर ये अवक्षेपित हो जाती हैं और मैक्रोफेज द्वारा नष्ट हो जाती हैं। 

4. पूरक तन्त्र का सक्रियण – एण्टीजन-एण्टीबॉडी कॉम्प्लेक्स अविशिष्ट प्रतिरक्षा तन्त्र के पूरक प्रोटीन अणुओं की श्रृंखला को सक्रिय कर देते हैं। ये प्रोटीन जीवाणु कोशिका की प्लाज्मा झिल्ली में रन्ध्र कर देते हैं जिससे ये फूलकर फट जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

3. आक्रामक को याद रखना – प्रतिरक्षी तन्त्र की कोशिकाएँ शरीर में प्रवेश करने वाले पदार्थों को याद रखने वाली स्मृति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। B तथा T दोनों प्रकार की लिम्फोसाइट्स स्मृति कोशिकाओं को उत्पन्न करती हैं जो रुधिर एवं लसीका में सुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। शरीर में दूसरी बार उन्हीं एण्टीजन के प्रवेश करते ही उसकी विरोधी सभी स्मृति कोशिकाएँ सक्रिय होकर संक्रमण से शरीर की रक्षा के लिए तत्पर हो जाती हैं। इसे द्वितीयक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कहते हैं।

T-लिम्फोसाइट्स या T-कोशिकाओं की एण्टीजन के प्रति अनुक्रिया – रोगाणुओं द्वारा उत्पन्न एण्टीजन के सम्पर्क में आने पर T-लिम्फोसाइट्स सक्रिय हो जाती हैं और ये वृद्धि करके समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होती हैं। विभाजन के बाद निम्नलिखित चार प्रकार की T-लिम्फोसाइट्स बनती हैं –

1. मारक कोशिकाएँ (Killer T-cells) – ये कोशिकाएँ रोगाणु कोशिकाओं पर सीधे आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।

2. दमनकारी या निरोधक कोशिकाएँ (Suppressor Cells) – ये शरीर की अपनी कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाने के लिए संक्रमण समाप्त होने के बाद T व B कोशिकाओं की सक्रियता को भी समाप्त करती हैं। 

3. सहायक कोशिकाएँ (Helper Cells) – ये कोशिकाएँ B-कोशिकाओं को सक्रिय करती हैं तथा . इनके द्वारा स्रावित इण्टरल्यूकिन-2 विभिन्न प्रकार की T-कोशिकाओं की सक्रियता को बढ़ाकर प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया को बढ़ाती हैं। 

4. स्मृति कोशिकाएँ (Memory Cells) – रोगाणुओं के सम्पर्क में आयी कुछ B-कोशिकाएँ संवेदनशील होने के बाद लसीका ऊतक में स्मृति कोशिकाओं के रूप में संगृहीत हो जाती हैं। और आजीवन जीवित रहती हैं। पुनः वही आक्रमण होने पर ये कोशिकाएँ तुरन्त सक्रिय हो जाती हैं।

B-लिम्फोसाइट्स या B-कोशिकाओं की एण्टीजन के प्रति अनुक्रिया – ऊतक द्रव में एण्टीजन के प्रवेश कर जाने पर B-लिम्फोसाइट्स उद्दीप्त होकर एण्टीबॉडीज बनाती हैं। एक विशिष्ट प्रकार के एण्टीजन के लिए विशिष्ट प्रकार की B-कोशिकाएँ होती हैं। कुछ B-लिम्फोसाइट्स सक्रिय होकर प्लाज्मा कोशिकाओं का एक क्लोन बनाती हैं। प्लाज्मा कोशिकाएँ लसीका ऊतक में रहकर एण्टीबॉडीज का निर्माण करती हैं। ये एण्टीबॉडीज लसीका एवं रुधिर में परिवहन करती रहती हैं। कुछ सक्रिय B-लिम्फोसाइट्स स्मृति कोशिकाओं के रूप में लसीका ऊतक में संचित हो जाती हैं। शरीर में पुनः वही संक्रमण होने पर ये अपने जैसी लाखों कोशिकाएँ बनाकर तेजी से विशिष्ट एण्टीबॉडीज का उत्पादन प्रारम्भ कर देती हैं।



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