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पर्यावरण से क्या अभिप्राय है? पर्यावरण के तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।याप्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।याभौतिक पर्यावरण के चार क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। पर्यावरण के दो प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए। यापर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए तथा मानव के क्रियाकलापों पर उनके प्रभावों की व्याख्या कीजिए। 

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पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment

पर्यावरण भूगोल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण’ भूतल पर चारों ओर का वह आवरण है जो मानव को प्रत्येक ओर से घेरे हुए है और उसके जीवन तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालता है तथा संचालित करता है। इस दशा में मानव से सम्बन्धित समस्त बाह्य तथ्य, वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशाएँ शामिल होती हैं, जिनकी क्रिया-प्रतिक्रियाएँ मानव के जीवन-विकास को प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा मानव के सभी । क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं। ये प्राकृतिक परिस्थितियाँ–धरातलीय बनावट, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी, खनिज-सम्पदा तथा जैविक तत्त्व-किसी-न-किसी प्रकार मानव को प्रभावित करते हैं; अर्थात् मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण की देन है। पर्यावरण के सम्बन्ध में सभी भूगोलवेत्ता एकमत नहीं हैं। अत: पर्यावरण को समझने के लिए निम्नांकित विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होगा –

जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “जीव के परिस्थिति कारकों का योग पर्यावरण है; अर्थात् जीवन की परिस्थिति के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।”
ए० जी० तांसले के अनुसार, “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।”

एम० जे० हर्सकोविट्ज के अनुसार, “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है। जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
प्रो० डेविस के अनुसार, “मानव के सम्बन्ध में भौगोलिक पर्यावरण से अभिप्राय भूमि अथवा मानव के चारों ओर फैले उन भौतिक स्वरूपों से है, जिनमें वह निवास करता है, जिनका उसकी आदतों और क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।”

पर्यावरण के प्रकार एवं तत्त्व
Elements and Types of Environment

पर्यावरण को निम्नलिखित दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है –

1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physicalor Natural Environment) – इसके अन्तर्गत वे समस्त भौतिक शक्तियाँ, तत्त्व एवं क्रियाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जिनको प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक शक्तियों में पृथ्वी की गतियाँ, सूर्यातप, गुरुत्वाकर्षण बल, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया, भू-पटल की गतियाँ तथा प्राकृतिक तथ्यों से सम्बन्धित सभी दृश्य सम्मिलित किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा भू-तल पर अनेक क्रियाओं का जन्म होता है, जिनसे पर्यावरण के तत्त्वों का जन्म होता है। इन शक्तियों अथवा क्रियाओं और तत्त्वों का सम्मिलित प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।

भौतिक क्रियाओं में भूमि का अपक्षय, अपरदन, निक्षेपण, ताप विकिरण, संचालन, संवाहन, वायु एवं जल की गतियाँ, जीवधारियों की उत्पत्ति तथा उनका विकास एवं विनाश आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इन प्रक्रियाओं से प्राकृतिक वातावरण अपनी अनेक क्रियाओं का क्रियान्वयन करता है, जिनका प्रत्यक्ष । प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।

भौतिक पर्यावरण के तत्त्व – इनकी उत्पत्ति एवं विकास धरातल पर विभिन्न शक्तियों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं –

⦁    भौगोलिक स्थिति
⦁    महासागर और तट
⦁    नदियाँ और झीलें
⦁    मिट्टियाँ, खनिज पदार्थ
⦁    उच्चावच
⦁    भूमिगत जल
⦁    देशों का आकार एवं विस्तार
⦁    जलवायु (तापमान, वर्षा, आर्द्रता आदि)
⦁    प्राकृतिक वनस्पति तथा
⦁    जैविक तत्त्व।

उपर्युक्त सभी तत्वों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इन सभी का सम्मिलित एवं व्यापक प्रभाव मानव-जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। ये सभी तत्त्व मानव के लिए महत्त्वपूर्ण नि:शुल्क प्राकृतिक उपहार हैं। प्रो० हरबर्टसन के अनुसार, “भौतिक शक्तियों को मानव पर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि वे मानव-जीवन एवं उसके क्रियाकलापों में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।”

2. सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment) – प्राकृतिक पर्यावरण को मनुष्य ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी विकास द्वारा परिवर्तित कर उन्हें अपने अनुरूप ढालने का प्रयास करता है; क्योकि वह (मानव) एक सजीव तथा क्रियाशील इकाई है। भूमि को जोतकर कृषि करना, उसमें नहरें, रेलपथ एवं सड़कें बनाना, वनों को साफ करना, पर्वतों को काटकर सुरंगें बनाना, नवीन बस्तियाँ बसाना, विभिन्न इमारतों का निर्माण करना, भू-गर्भ से खनिज पदार्थों का शोषण करना, उद्योग-धन्धे स्थापित करना आदि मानवीय क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। इस प्रकार मानव एक केन्द्रीय कारक है। मानव-निर्मित इस प्रकार के पर्यावरण को सांस्कृतिक या प्राविधिक पर्यावरण के नाम से पुकारा जाता है।

मानव-निर्मित वातावरण में भी विभिन्न शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ क्रियाशील रहती हैं। सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों में क्षेत्र-विशेष के जनसमूह के विभिन्न पहलुओं; जैसे-जनसंख्या, वितरण, लिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीकी आदि को सम्मिलित किया जाता है। सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पोषण, समूहीकरण, पुन: उत्पादन, प्रभुत्व स्थापन, प्रवास, पृथक्करण, अनुकूलन, समाचौर्जन, विशेषकरण तथा अनुक्रमण आदि सम्मिलित किये जाते हैं।

साँस्कृतिक वातावरण के तत्त्व – सांस्कृतिक वातावरण के तत्त्व मानव एवं उसके समूह दोनों की प्रभावित करते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं –

⦁    प्राथमिक या अनिवार्य आवश्यकताएँ – भोजन, वस्त्र एवं आवास।
⦁    आर्थिक व्यवसाय के प्रतिरूप – प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसाय; जैसे-खाद्यान्न संग्रहण, आखेट करना, मछली पकड़ना, निर्माण उद्योग, परिवहन, वाणिज्य एवं व्यापार विभिन्न सेवाएँ आदि।
⦁    तकनीकी प्रतिरूप – यन्त्र, उपकरण, यातायात एवं संचार के साधन।
⦁    सामाजिक आवश्यकताएँ – शिक्षा, भाषा, धर्म, दर्शन, कला एवं साहित्य।
⦁    सामाजिक संगठन – समुदाय, प्रबन्ध, सहकारिता, घर-परिवार, सामाजिक प्रथाएँ, लोक-रीतियाँ आदि।
⦁    राजनीतिक संगठन – राज्य, सरकार, सम्पत्ति, कानून, शक्तियाँ, जनमत एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि।

प्राकृतिक पर्यावरण का मानव के क्रियाकलापों से सम्बन्ध
Relation between Natural Environment and Human Activities

प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही वातावरणों का सामूहिक प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत समय तत्त्व भी महत्त्वपूर्ण है। मानव भूगोल में दोनों ही प्रकार के वातावरण का विशेष महत्त्व है। वातावरण के सभी प्राकृतिक तत्त्व, सांस्कृतिक तत्त्वों से जुड़े हुए हैं। कुमारी सेम्पुल के शब्दों में, “मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है। सभी जड़ एवं चेतन पदार्थों में भौगोलिक वातावरण का प्रभाव अन्तिम है।” प्रो० वायने सांस्कृतिक पर्यावरण को मानव-क्रियाओं और भौतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार, “मानवीय क्रियाएँ जो विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्पन्न की जाती हैं, भौतिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित करती हैं। इनके फलस्वरूप भौतिक पर्यावरण परिवर्तित होता है और सांस्कृतिक पर्यावरण का विकास होता है। मनुष्य स्वयं भी इस पर्यावरण का अभिन्न अंग बन जाता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल के अध्ययन के लिए पर्यावरण के दोनों अंगों अर्थात् प्राकृतिक व सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रारम्भिक ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।



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