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पठित अंश के आधार पर सिद्ध कीजिए कि भूषण वीररस के कवि थे।

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यह सर्वविदित है कि रीतिकाल के श्रृंगारमेय वातावरण में कवि भूषण ने लीक से हट कर वीररस का शंखनाद किया था। उन्होंने महाराज शिवाजी और छत्रसाल को अपने काव्य का नायक बना कर उनकी वीरता, धाक और रणकौशल का वर्णन किया है।

महाराज शिवाजी अपनी चतुरंगिणी सेना सजाकर उत्साह में भरे शत्रुओं पर विजय पाने जा रहे हैं। स्पष्ट है कि उत्साह वीररस का स्थायीभाव है और शिवाजी उस समय वीररस में ओतप्रोत हैं। नगाड़ों की ध्वनि ‘उद्दीपन’ बनकर उनके उत्साह को बढ़ा रही है। छंद पाठकों के मन में भी वीररस का संचार कर रहा है।

एक और दृश्य देखिए। वीर शिवा अहंकारी औरंगजेब के दरबार में उपस्थित है। शिवाजी को नीचा दिखाने के लिए उन्हें छह हमारी मनसबदारों जैसे छोटे पद वालों के साथ स्थान दिया गया है। कवि यहाँ पर भी शिवाजी के वीर स्वभाव का परिचय कराता है। क्रोध रौद्र रस का स्थायीभाव है। और वीर को अनुचित और स्वाभिमान पर आघात करने वाले आचरण पर क्रोध आना स्वाभाविक है। निर्भीक, स्वाभिमानी और वीरपुरुष भरे दरबार में औरंगजेब को चुनौती देते हैं।

इसी प्रकार अन्य संभावित छंदों में भी हम महाराज शिवाजी की वीरता और शत्रुओं पर उनकी धाक का प्रमाण देखते हैं। ‘तेरी करबाल धरै म्लेच्छन को काल’, म्लेच्छवंस पर सेर शिवराज है” तथा जहाँ पातसाही वहाँ दावा सिवराज कौ” जैसे कथन शिवाजी महाराज वीरता का प्रमाण दे रहे हैं।

अत: संकलित छंदों से स्वत: सिद्ध हो रहा है कि भूषण वीर रस के कवि थे।



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