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राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ई० पर एक लेख लिखिए।

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मानवीय सम्भावनाओं के विकास में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रत्येक देश अपनी शिक्षा-व्यवस्था विकसित करता है। भारत के सन्दर्भ में विकासोन्मुख शिक्षा-व्यवस्था हमारे अतीत के अनुभवों व वर्तमान की आवश्यकताओं पर आधारित होकर हमारी जनता के साथ-साथ मानवता के लिए एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकेगी।
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति का निर्माण व क्रियान्वयन इसी सन्दर्भ में देखा व समझा जाना चाहिए। संसद ने 1986 ई० के अपने बजट अधिवेशन में राष्ट्रीय शिक्षा-नीति को स्वीकार किया था। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य निर्देशों व विशेष महत्त्व के क्षेत्रों की ओर संकेत किया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई० इस मूलभूत सिद्धान्त पर आधारित है-“शिक्षा वर्तमान और भविष्य में विशिष्ट पूँजी निवेश है। इसका अर्थ है कि शिक्षा सभी के लिए है। शिक्षा समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और प्रजातन्त्र जो हमारे संविधान के आदर्श हैं, के उद्देश्यों को आगे बढ़ा सकती है और अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्रों में प्रशिक्षित जनशक्ति प्रदान कर सकती है।

1. शिक्षा के बारे में राष्ट्रीय दृष्टिकोण – शिक्षा-नीति शिक्षा के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह इस बात की ओर संकेत करती है कि राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था के विकास के लिए निरन्तर प्रयत्नों की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था का अर्थ एक समान व संकीर्ण व्यवस्था नहीं है। यह एक व्यापक ढाँचे के अन्तर्गत लचीला रुख अपनाने की अनुमति देती है। राष्ट्रीय शिक्षा के सिद्धान्त का अर्थ है
⦁    सभी के लिए शिक्षा, सफलता व उच्च स्तर प्राप्ति के अवसर,
⦁    शिक्षा का समान ढाँचा,
⦁    एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा तथा
⦁     हर चरण में एक निश्चित अध्ययन का स्तर।

2. समानता के लिए शिक्षा – राष्ट्रीय शिक्षा-नीति असमान अवसरों को दूर करने तथा उन सभी लोगों को शिक्षा के समान अवसर देने पर जोर देती है, जिन्हें अभी यह अवसर नहीं मिल पाया है

(i) लड़कियों के लिए – राष्ट्रीय शिक्षा नीति सभी के अधिकारों में वृद्धि करने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएगी। शिक्षा द्वारा स्त्रियों के सम्मान के स्तर में वृद्धि की जाएगी, स्त्रियों के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाएगा तथा उनके विकास के लिए सक्रिय कार्यक्रम अपनाये जाएँगे। स्त्रियों में अशिक्षा को दूर करने, शिक्षा के अवसर में आने वाली बाधाओं को दूर करने व उन्हें
आरम्भिक शिक्षा में बनाये रखने के लिए सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए विशेष साधन प्रदान किये जाएँगे तथा उसके बारे में निरन्तर सूचना प्राप्त की जाएगी।
(ii) अनुसूचित जातियों के लिए  – राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुसूचित जातियों सहित समाज में पिछड़े वर्ग के सभी लोगों के लिए शिक्षा के समुचित क्षेत्र में प्रोत्साहन की सिफारिश की गयी है।
(iii) अनुसूचित जनजातियों के लिए – जनजाति क्षेत्र में स्कूल खोलने को प्राथमिकता दी जाएगी। आरम्भिक वर्षों के लिए विशेष पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी जिससे उन्हें क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देने का प्रबन्ध हो सके। अनुसूचित जातियों की भाँति यहाँ भी अध्यापक शिक्षित जनजाति के युवकों में से चुने जाएँगे।

(iv) अन्य पिछड़े वर्ग व क्षेत्र के लिए – शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, समुचित प्रोत्साहन दिया जाएगा।

(v)अल्पसंख्यकों के लिए –  कुछ अल्पसंख्यक समूह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं, वे शिक्षा से वंचित हैं। इन समूहों के लिए शिक्षा की व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

(vi) विकलांगों के लिए –  जिला मुख्यालयों पर विकलांग छात्रों के लिए विकलांगों को व्यावसायिक शिक्षा देने के भी पर्याप्त प्रबन्ध होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति के अन्तर्गत अपंग लोगों की विशेष कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्राथमिक कक्षा के अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है।

(vii) शिक्षा का समान ढाँचा – शिक्षा आयोग (1964-66) ने 10+2+3 के रूप में सारे देश के लिए समान ढाँचे की सिफारिश की है। 1968 के बाद देश के अधिकांश राज्यों ने इस ढाँचे को स्वीकार किया है और बाकी राज्य इसे अपनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं। इस उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ने सिफारिश की है कि प्रथम दसवर्षीय शिक्षा में 5 वर्ष प्राथमिक, 3 वर्ष उच्च प्राथमिक व 2 वर्ष माध्यमिक शिक्षा को दिये जाएँ। 5 वर्ष प्राथमिक व 3 वर्ष उच्च प्राथमिक, इस प्रकार कुल मिलाकर 8 वर्ष की आरम्भिक शिक्षा होगी।

3. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढाँचा – राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनायी है, जिसमें कुछ समान तत्त्व होंगे। साथ ही कुछ ऐसे तत्त्व भी होंगे जहाँ लचीली नीति अपनायी जाएगी। आरम्भिक व माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
⦁    विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानव संसाधनों का विकास।
⦁    सभी बच्चों के लिए प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर तक व्यापक सामान्य शिक्षा का प्रावधान।
⦁    प्राइमरी, उच्च प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई की समान रूपरेखा।
⦁    पाठ्यक्रम में भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन, संवैधानिक दायित्व, राष्ट्रीय अस्मिता को मजबूत बनाना, भारत की समान संस्कृति परम्परा, समता, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरुष समानता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विभेद का निराकरण तथा वैज्ञानिक स्वभाव का निर्माण ये प्रमुख तत्त्व हैं। जो समान रूप से सभी स्कूलों में पढ़ाए जाएँगे।



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