1.

सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में प्राणिशास्त्रीय या जैविकीय कारकों की विवेचना कीजिए।

Answer»

प्राणिशास्त्रीय या जैविकीय कारकों से तात्पर्य उन कारकों से है जो हमें अपने माता-पिता द्वारा वंशानुक्रमण में प्राप्त होते हैं। प्राणिशास्त्रीय कारक जनसंख्या के प्रकार को निर्धारित करते हैं। हमारा स्वास्थ्य, शारीरिक एवं मानसिक क्षमता एवं योग्यता, विवाह की आयु, प्रजनन दर, हमारा कद एवं शारीरिक गठन आदि सभी वंशानुक्रमण एवं जैविकीय कारकों से प्रभावित होते हैं। किसी समाज के लोगों की जन्म-दर एवं मृत्यु-दर, औसत आयु आदि पर भी प्राणिशास्त्रीय कारकों को प्रभाव पड़ता है। जन्म-दर, मृत्यु-दर एवं औसत आयु में परिवर्तन होने से समाज पर भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी समाज में पुरुषों की मृत्यु-दर अधिक है तो वहाँ विधवाओं की संख्या में वृद्धि होगी एवं विधवा-विवाह की समस्या पैदा होगी तथा स्त्री की सामाजिक प्रस्थिति एवं बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एवं समाजीकरण भी प्रभावित होगा।

दुर्बल एवं कमजोर शारीरिक एवं मानसिक क्षमता वाले लोग आविष्कार एवं निर्माण का कार्य नहीं कर पाएँगे। अतः आविष्कारों के कारण होने वाले परिवर्तन नहीं होंगे। इसकी तुलना में योग्य व्यक्ति नव-निर्माण एवं आविष्कार के द्वारा समाज में परिवर्तन लाने में सक्षम होंगे। किसी समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ अधिक होने पर बहुपत्नी-विवाह प्रथा एवं स्त्रियों की कमी होने पर बहुपति प्रथा तथा दोनों की समान संख्या होने पर एक-विवाह प्रथा का प्रचलन होगा। सामान्यतः यह माना जाता है कि अन्तर्जातीय एवं अन्तर्रजातीय विवाह से प्रतिभाशाली सन्तानें पैदा होती हैं, जो आविष्कारों द्वारा नवीन परिवर्तन लाने में सक्षम होती हैं।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions