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Answer» सामाजिक वानिकी ग्रामीण अंचलों के बेरोजगार व्यक्तियों को रोजगार एवं अतिरिक्त आय के साधन उपलब्ध कराने में सहायक है; क्योंकि ⦁ सीमान्त एवं लघु कृषक अपने खेतों के चारों ओर तथा खाली पड़ी बंजर भूमि पर बहुउद्देशीय वृक्ष (जैसे-यूकेलिप्ट्स आदि) उगाकर उनसे चारा, जलाने की लकड़ी आदि प्राप्त कर सकते हैं। ⦁ इस पद्धति द्वारा पेड़ों से सम्पूर्ण फसल प्रणाली के सूक्ष्म वातावरण में सुधार होता है। ⦁ लगाये गये पेड़ों के रख-रखाव में छोटे किसान अतिरिक्त रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। ⦁ इस पद्धति से किसान अपनी भूमि से दोहरा लाभ प्राप्त करने में सफल होता है, क्योंकि पेड़ों के साथ ही खाद्यान्न फसलों का भी उत्पादन सम्भव हो पाता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है। ⦁ भूमि-सुधार और पर्यावरण सन्तुलन करने में सहायता मिलती है। ⦁ इस प्रक्रिया में विकसित किये गये पेड़ों से कुटीर उद्योग-धन्धे आरम्भ किये जा सकते हैं। सामाजिक वानिकी द्वारा ऐसे अनेक वन-उत्पादों की पूर्ति की जा सकती है जिनसे लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धे विकसित किये जा सकें। ⦁ सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की परती एवं बेकार पड़ी भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जाना सम्भव होता है। ⦁ सामाजिक वानिकी द्वारा मृदा में नमी का संरक्षण बनाये रखना सम्भव हो पाता है, जिससे बाढ़ और सूखे का प्रकोप कम हो जाता है। उपर्युक्त लाभ ग्रामीण अंचलों में सामाजिक वानिकी की उपादेयता को प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि विगत वर्षों में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम भारत में लोकप्रिय हो रहा है और ग्रामीण अंचलों में इसे अपनाने के लिए जागरूकता पैदा हो रही है।
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