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सामाजिक वानिकी का अर्थ एवं परिभाषाएँ

सामाजिक वानिकी एक नवीन अवधारणा है, जो सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति और लाभ के लिए पेड़ लगाने, उनका विकास करने तथा वनों के संरक्षण पर बल देती है। यह वनों के विकास के लिए जनता के सहयोग पर बल देती है। भारत में 747.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को वन-क्षेत्र घोषित किया गया। इसमें से 397.8 लाख हेक्टेयर को आरक्षित और 216.5 लाख हेक्टेयर को सुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पहाड़ों में अधिकतम वन-क्षेत्र 60% और मैदानों में 20% हैं। पिछले कुछ वर्षों में वनों के क्षेत्र में होने वाली कमी को देखते हुए सामाजिक वानिकी की अवधारणा को विकसित किया गया है।
विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक वानिकी को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है
डॉ० राणा के अनुसार, “समाज के द्वारा, समाज के लिए, समाज की ही भूमि पर, समाज के जीवन-स्तर को सुधारने के सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किये जाने वाले वृक्षारोपण को सामाजिक वानिकी कहते हैं।’
“वनों को लगाने, संरक्षण करने तथा उत्पादन में समाज की भागीदारी सुनिश्चित करने का कार्यक्रम सामाजिक वानिकी है।”
सामाजिक वानिकी समाज की भागीदारी का एक सुनिश्चित कार्यक्रम है। इसके माध्यम से राष्ट्र में वन-क्षेत्रों का विकास कर उन्हें समाज के लिए उपयोगी बनाना है। स्वार्थी मानव ने अपने हित के लिए वृक्षों को अन्धाधुन्ध काटकर भावी पीढ़ी के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दीं। देश में वर्तमान आवश्यकताओं को देखते हुए वन-क्षेत्र अत्यन्त कम हैं। सरकार राष्ट्र में वन-क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए जिन कार्यक्रमों को संचालित कर रही है उनमें से सामाजिक वानिकी महत्त्वपूर्ण है।

सामाजिक वानिकी के रूप (कार्यक्षेत्र)

सामाजिक वानिकी के निम्नलिखित रूप पाये जाते हैं

1. कृषि वानिकी – कृषि वानिकी के अन्तर्गत ग्रामीण आवासों के भीतर अहातों में वृक्ष लगाना है। ग्रामों में खाली पड़ी सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण करना, पवन के वेग पर नियन्त्रण करने के लिए हरित पट्टी तैयार करना तथा पेड़ों की रक्षा-पंक्तियाँ बनाना इस वानिकी के मुख्य लक्ष्य हैं। कृषि वानिकी के माध्यम से कृषकों को ईंधन और सामान्य उपयोग की लकड़ियाँ उपलब्ध होती हैं। कृषि वानिकी कृषि के सहायक के रूप में विकसित की जाती है।

2. प्रसार वानिकी – प्रसार वानिकी के अन्तर्गत नहरों के किनारे, रेलवे-लाइनों के किनारे तथा सड़कों के दोनों छोरों पर स्थित वृक्ष आते हैं। इन क्षेत्रों में वृक्षारोपण करके उनका संरक्षण करना प्रसार वानिकी का लक्ष्य है। प्रसार वानिकी झीलों तथा खेतों की मेड़ों पर वृक्ष लगाने के कार्यक्रम प्रसारित करती है। इसका लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में वन-क्षेत्रों का विस्तार करना है।

3. नगर वानिकी – नगरीय वानिकी नगर क्षेत्र में, निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में वृक्षारोपण से जुड़ी है। इसके अन्तर्गत नगरों में हरित पट्टी व सुरक्षा पट्टी विकसित करके नगरों में होने वाले प्रदूषण पर नियन्त्रण लगा है।
सामाजिक वानिकी की विशेषताएँ
सामाजिक वानिकी की परिभाषा एवं रूपों के विवेचन के आधार पर सामाजिक वानिकी में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं
⦁    सामाजिक वानिकी में लाभार्थियों को कार्यक्रम के प्रारम्भिक स्तर पर ही भागीदार बनाया जाती
⦁    इस कार्यक्रम के द्वारा भागीदारों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।
⦁    सामाजिक वानिकी में सामुदायिक एवं सार्वजनिक भूमि का उपयोग वृक्षारोपण के लिए कियो जाता है।
⦁    सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत लकड़ी, चारा, फल, रेशा, ईंधन तथा फर्नीचर की लकड़ी प्राप्त की जाती है।
⦁    सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत विकसित किये गये वन-क्षेत्रों पर सरकार का नियन्त्रण रहता है।
⦁    सामाजिक वानिकी के पोषण हेतु व्यय करने के लिए वित्तीय सहायता पंचायत, सरकारी अंशदान अथवी स्वेच्छा से किये गये योगदान द्वारा उपलब्ध होती है।
⦁    रेलवे-लाइनों, सड़कों और नहरों के किनारों पर वृक्ष लगाना इस कार्यक्रम का प्रमुख अंग है।
⦁    तालाबों तथा जलाशयों के चारों ओर लताएँ और झुण्डों के रूप में वृक्ष लगाये जाते हैं।
⦁    सामुदायिक क्षेत्रों तथा सार्वजनिक भूमि पर वन लगाकर वन-क्षेत्र विकसित किये जाते हैं।
⦁    नष्ट हो चुके वनों के स्थान पर नये वृक्ष लगाकर वन-क्षेत्र विकसित किये जाते हैं।
⦁    खेतों की मेड़ों पर फसलें उगाने के साथ-साथ वृक्ष भी लगाये जाते हैं।
⦁    सामाजिक वानिकी ग्रामीण लोगों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम है।
⦁    सामाजिक वानिकी ग्रामीणों की वनों पर निर्भरता में वृद्धि करती है।

सामाजिक वानिकी के उद्देश्य

ग्रामीण क्षेत्रों में वनों का विस्तार करने के लिए सामाजिक वानिकी को क्रियान्वित किया गया। सामाजिक वानिकी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित रखे गये
⦁    ग्रामवासियों में वृक्षों के प्रति लगाव उत्पन्न करना तथा वृक्षारोपण में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करना।
⦁     गाँव के लोगों में एक व्यक्ति एक वृक्ष’ का लक्ष्य बनाने पर बल देना।
⦁     ग्रामवासियों तथा जनजातियों को वृक्षों की उपयोगिता से परिचित कराना।
⦁     वनों के विकास के माध्यम से ग्रामीण व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना।
⦁     वनों का वर्गीकरण उनकी उपयोगिता के आधार पर करना।
⦁     वन संरक्षण पर अधिक बल देना।
⦁     ग्रामीण क्षेत्रों में नये वन-क्षेत्रों के विकास पर बल देना।
⦁     सार्वजनिक हित और पर्यावरण संरक्षण के लिए सहयोग जुटाना।
⦁     ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी की उपलब्धता बढ़ाना।।
⦁     वनों की अन्धाधुन्ध कटाई पर प्रभावी रोक लगाना।
⦁    देश के 33% क्षेत्र पर वनों का विस्तार कराना।
⦁     पवन के झकोरों, वर्षा तथा बाढ़ से भू-क्षरण को रोकना।
⦁     ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन की उपलब्धता बढ़ाकर गोबर को खाद के रूप में प्रयुक्त कराना।
⦁    स्थानीय जनसंख्या को आँधी, तूफान तथा वर्षा की तीव्रता से सुरक्षित रखना।
⦁     ग्रामीण क्षेत्रों में वनों पर आधारित उद्योग लगाकर रोजगार के अवसर बढ़ाना।
⦁    ग्रामीण जनता के वृक्षारोपण कौशल का अधिकतम उपयोग करना।
⦁    लाभार्जन के लिए उपयोगी वृक्षों के लगाने पर बल देना।।
⦁     समुदाय के लिए वृक्षारोपण करके वन लगाने के लिए व्यर्थ पड़ी भूमि का सदुपयोग करना।
⦁    वन-क्षेत्रों में ग्रामीण जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना।
⦁     रेलवे-लाइनों, सड़कों, नहर की पटरियों, नदियों के तटों तथा जलाशयों के चारों ओर वन क्षेत्रों का विकास करना।।
⦁     ग्रामीणों को लकड़ी के साथ-साथ पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध कराना।
⦁     बहु-उद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाओं के क्षेत्रों में मिट्टी एवं जल-संरक्षण के प्रभावी उपाय करना।।

सामाजिक वानिकी का महत्त्व

वन राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं। सामाजिक वानिकी का उद्देश्य वनों का संरक्षण करके इनमें वृद्धि करना तथा इन्हें समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक उपयोगी बनाना है।सामाजिक वानिकी के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है

(अ) प्रत्यक्ष लाभ

⦁    उपयोगी लकड़ी की प्राप्ति – वनों से फर्नीचर, रेल के डिब्बे, जहाज, माचिस आदि बनाने के लिए उपयोगी लकड़ी प्राप्त होती है।

⦁    उद्योगों के लिए कच्चे माल – वनों से कागज, दियासलाई, रेशम, चमड़ा, तेल तथा फर्नीचर आदि उद्योगों के लिए कच्चे माल उपलब्ध होते हैं।

⦁    रोजगार – वनों से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है तथा ये 7.8 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।

⦁     सरकार को आय – सरकार को वनों से 400 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है।

⦁     पशुओं को चारा – वन चारा देकर पशुओं का पालन-पोषण करते हैं।

⦁    विदेशी मुद्रा की प्राप्ति – वनों से प्राप्त उपजों का निर्यात करने से भारत को ₹ 50 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

⦁    औषधियाँ – वनों से उपयोगी जड़ी-बूटियाँ व औषधियाँ प्राप्त होती हैं।

(ब) अप्रत्यक्ष लाभ।

⦁    जलवायु पर नियन्त्रण – वन देश की जलवायु को समशीतोष्ण बनाये रखते हैं तथा भाप भरी हवाओं को आकर्षित कर वर्षा कराने में सहायक होते हैं।

⦁    भूमि के कटाव पर रोक – वन वर्षा की गति को मन्द करके भूमि के कटाव को रोकते हैं।

⦁    बाढों पर नियन्त्रण – वन वर्षा के जल-प्रवाह की गति को मन्द करते हैं तथा जल को स्पंज की तरह सोखकर बाढ़ों पर नियन्त्रण करते हैं।

⦁    मरुस्थल-प्रसार पर रोक – वन मिट्टी के कणों को अपनी जड़ों से बाँधे रहते हैं तथा मरुस्थल के प्रसार को रोकते हैं।

⦁    पर्यावरण सन्तुलन – वन कार्बन डाई-ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलकर वायु-प्रदूषण रोकते हैं तथा पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखते हैं।

⦁    भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि – वन अपनी जड़ों से जल सोखकर भूमिगत जल के स्तर को ऊँचा कर देते हैं।

    अन्य लाभ – फल-फूलों की प्राप्ति, आखेट, सौन्दर्य में वृद्धि और भूमि को उर्वरता प्रदान करके वन अन्य लाभ भी प्रदान करते हैं।

(स) आर्थिक लाभ

सामाजिक वानिकी से निम्नलिखित आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं

⦁    ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार – सामाजिक वानिकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने को सर्वोत्तम माध्यम है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करके, ईंधन और चारे की आपूर्ति करके ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों की दशा सुधारने में महत्त्वपूर्ण योग देती है।

⦁    ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगिक विकास में सहायक – सामाजिक वानिकी से प्राप्त लकड़ी, फल तथा अन्य उत्पादों पर अनेक उद्योग-धन्धे विकसित कर ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक विकास किया जा रहा है। इनसे कागज, परती लकड़ी, दियासलाई तथा फर्नीचर बनाने के उद्योग संचालित किये जा सकते हैं। औद्योगिक विकास के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि और विकास की लहर दौड़ जाएगी।

⦁    प्रदूषण की समस्या का निराकरण – वर्तमान में प्रदूषण एक गम्भीर संकट बनकर उभर रहा है। इसके कारण बीमारियाँ, पर्यावरण की उपयोगिता का ह्रास तथा मानसिक तनावे जैसी समस्याएँ जन्म ले रही हैं। वृक्ष प्रदूषण की समस्या को हल करके प्रदूषण पर नियन्त्रण पाने में सक्षम हैं।

⦁    वन-संरक्षण पर बल – सामाजिक वानिकी का लक्ष्य वन-संरक्षण है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय निधि को संरक्षित कर मानव-मात्र की महती सेवा करता है। वनों का संरक्षण करके भावी पीढ़ी को अनेक प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सकता है। मानवता के संरक्षण के लिए वनों का संरक्षण नितान्त आवश्यक है।

सामाजिक वानिकी को सफल बनाने के लिए सुझाव

सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों को सफल बनाने की नितान्त आवश्यकता है। इनकी सफलता पर ग्रामों का सर्वांगीण विकास तथा राष्ट्र की आर्थिक प्रगति निर्भर है। सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों की सफलता के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
⦁     सामाजिक वानिकी के लक्ष्य भली प्रकार सोच-समझ कर तय किये जाएँ।
⦁    वृक्षारोपण के लक्ष्य निर्धारित करके उनके क्रियान्वयन के उपाय किये जाएँ।
⦁     वन-महोत्सव के लक्ष्य तथा उपयोगिता से जनसामान्य को परिचित कराया जाए, जिससे लोग सामाजिक वानिकी में सक्रिय भाग ले सकें।
⦁    इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए परिश्रमी, योग्य और निष्ठावान कर्मचारी भेजे जाएँ।
⦁     उत्तम कार्यों के लिए कर्मचारियों को पुरस्कृत किया जाए।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि वानिकी के विस्तार पर अधिक ध्यान दिया जाए।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में जल्दी विकसित होने वाले वृक्ष लगाये जाएँ।
⦁    सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत ऐसे वृक्ष लगाने पर बल दिया जाए, जिनसे ईंधन के साथ फल, फूल तथा चारा भी प्राप्त होता रहे।
⦁    वृक्ष काटने के स्थान पर लगाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाए।
⦁     सड़कों, नहरों तथा रेलवे लाइनों के दोनों ओर वृक्षारोपण किया जाए।
⦁    “एक व्यक्ति एक पेड़ के आदर्श को क्रियान्वित कराया जाए।
⦁    वृक्षों के संरक्षण पर ध्यान दिया जाए। हरे वृक्षों के कटान को रोकने के लिए कड़े कानून बनाये जाएँ।।
⦁    वृक्षों के विनाश को रोकने के लिए कानूनों का दृढ़ता से पालन कराया जाए।
⦁    पर्वतीय क्षेत्रों में वृक्ष काटने पर कठोर प्रतिबन्ध लगाये जाएँ।
⦁    पशुओं को वनों में चराने पर रोक लगा दी जाए।
⦁    सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कुशल और अनुभवी कार्यकर्ता तैयार किये जाएँ।
⦁     वृक्षों के प्रति जनसामान्य का लगाव पैदा किया जाए।
⦁    सरकार द्वारा वृक्षों की पौध का मुफ्त वितरण किया जाए।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में पौधघर विकसित किये जाएँ।
⦁    सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को युद्ध स्तर पर लागू कराने के लिए इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम का रूप दिया जाए।



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