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सारा आकाश’ उपन्यास में समर की भाभी मध्यमवर्गीय परिवार की भाभियों का प्रतिनिधित्व करती है।’ इस कथन को ध्यान में रखते हुए भाभी की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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‘सारा आकाश’ उपन्यास राजेंद्र यादव द्वारा लिखा गया एक यथार्थवादी उपन्यास है। इस उपन्यास के कथानायक की भाभी मध्यवर्गीय परिवार की परंपरागत नारियों का आदर्श प्रस्तुत करती है जिसमें रूढ़िग्रस्तता, ईर्ष्या, और दमन की नीति शामिल रहती है। वह समर के बड़े भाई धीरज की पत्नी है और संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी बहू होने के नाते अपना वर्चस्व बनाए हुए है। उसके चरित्र में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं-

1. घरेलू नारी-भाभी को उपन्यास में एक घरेलू स्त्री के रूप में दिखाया गया है। वह पढ़ी-लिखी नहीं है। परंतु घर के काम-काज में उसे पूरा कौशल प्राप्त है। वह गृह-व्यवस्था को पूरी तरह अपने हाथ में ले लेती है। इस रूप में वह अम्मा को निश्चिंत बना देती है। उसे घर-परिवार के सुख-दुःख की पूरी समझ है। वह घर की स्थितियों के अनुसार बदलना जानती है।

2. ईर्ष्यालु-भाभी में नारी सुलभ ईर्ष्या की भरपूर मात्रा पाई जाती है। वह प्रभा की जेठानी होने के नाते तो नहीं परंतु उसकी उच्च शिक्षा और सुंदरता के कारण उससे निरंतर जलती रहती है। उसका भरसक प्रयास रहता है कि समर को प्रभा के विरुद्ध उकसाया जाए और प्रभा को अपमानित करवाने का कोई भी अवसर हाथ से न जाने दिया जाए। उसकी यह प्रवृत्ति इस सीमा तक चली जाती है कि पहली रसोई बनाने के उत्सव पर प्रभा द्वारा बनाई गई दाल में अतिरिक्त नमक झोंक देती है ताकि उसकी निंदा हो। हुआ भी यही, समर थाली को ठोकर मारकर खाया हुआ प्रथम ग्रास उल्टी के रूप में थूक आता है। 

भाभी समर को बहकाते हुए उसके मर्म पर चोट करती रहती है। एक स्थल देखिए “सो बात तो हमें भी लगती है लाला जी ! प्रभा में थोड़ा-सा अपनी पढ़ाई और खूबसूरती को लेकर गुमान है। मुझसे पूछो तो ऐसी कोई परीजादी भी नहीं है। यों अपनी उमर पर खूबसूरत कौन नहीं होती, हम नहीं थे। अम्माजी नहीं थीं? और कहने के साथ ही वह अपनी बात पर लजा गई।” भाभी का चरित्र ऐसा है कि वह समर को तनिक भी अहसास नहीं होने देती कि वह उसे प्रभा भड़का रही है।

3. आडंबरप्रिय-भाभी का व्यक्तित्व आडंबर से भरपूर है। वह दिखावा करना जानती है। इसीलिए उसके स्वभाव में प्रदर्शन की भूमिका अधिक रहती है। वह अम्मा, बाबूजी, मुन्नी और समर के सामने निरंतर आडंबर करती देखी जा सकती है। दूसरी ओर उसका प्रभा के प्रति दृष्टिकोण सौत जैसा है। वह नहीं चाहती कि उस घर में कोई उसकी लेशमात्र भी सराहना करे या उसके लिए यह संतोष प्रकट करे। वह समर के सामने प्रभा की हितचिंतक होने का नाटक करते हुए इस प्रकार कहती है

“अच्छा, छोडो लाला जी, तुम भी क्या जरा-जरा-सी बातों में सिर खपाया करते हो।”चलो खाना खा लो। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारा भी खून गरम है और यह भी अभी बच्ची ही है। मैं समझा दूँगी उसे। तब भी ऐसा नहीं करना चाहिए था। पर सबसे बड़ी मुश्किल तो यही है कि अपने को न जाने क्या समझती है? हमें तो बात करने लायक भी नहीं मानती। कोई आए, कोई जाए, न घूघट न पल्ला। बस, किताब ले आई है, अपने घर से, सो उसे ही पढ़ती रहती है। और तो कुछ लायी नहीं है। जो है सो तो है ही, पढ़ाई का दिखावा बहुत है। खैर लाला जी तुम अपनी पढ़ाई लिखाई इस सबके आगे क्यों बरबाद करते हो।” इस प्रकार वह समर की चहेती होने का आडंबर करती है और उसका मन प्रभा से दूर करने का भरपूर प्रयास करती है।

4. घर पर एकाधिकार-भाभी अम्मा और बाबू जी का मन जीत चुकी है। वे उस पर शत प्रतिशत-विश्वास करते हैं। इसी बात का लाभ उठाकर वह घर पर पूर्णाधिकार जमा लेती है। खाना-पिलाना, उठना-बैठना आदि सब कुछ उसी के संकेत पर होता है। वह प्रभा को भी अपनी इच्छानुसार चलाना चाहती है। वह प्रभा से कहती है

“माफी माँग लो, ऐसी बातों का क्या फायदा, तुम्हीं छोटी बन जाओ।” भाभी घर के सदस्यों को अपनी उँगलियों पर नचाना चाहती है, विशेषतः प्रभा को। इसीलिए उसे नीचा दिखाने के प्रयास में लगी रहती है ताकि सभी उसी पर विश्वास कर सकें। प्रभा की निंदा भी इसी उद्देश्य से की जा रही है

“बहू खाना बनाना नहीं जानती। अब यह सब भी सिखाना होगा। दिखाते वक्त किसी को क्या पता कि खाना किसने बना कर खिलाया है। बड़ी चली थी रिस्टवाच पहनकर खाना बनाने। बोलो घड़ी का तुम चूल्हे में करोगी क्या? या तो फैशन ही कर लो, या काम ही कर लो। अरे पहली बार तो ठीक से बनाकर खिला देतीं। अब चाहे अमरित ही बनाती रहो, यह बात तो अब आने से रही।”

भाभी प्रभा को अपने अधीन करने का हर संभव टोटका आजमाती है। वह उसके अहं को चोट पहुँचाने के लिए दिन-रात सोचती रहती है। उसका विचार है कि उसे समर के सामने नीचा दिखाया जाए। संदर्भ देखिए

“देखो प्रभा, मान जाओ, ऐसा नहीं करते। तुम नयी बहू हो। तुम शुरू से ही ऐसा करोगी तो फिर आगे कैसे चलेगा? तुम्हें तो अभी सारी जिंदगी बितानी है। यह तो सब होता ही रहता है।”

5. रूढ़िवादी-भाभी एक रूढ़िवादी स्त्री है। उसे गली-सड़ी मान्यताओं पर पूरा विश्वास है। वह शगुन-शास्त्र, जादू-टोना, टोटका, पूजा-पाठ आदि के संबंध में पूरी आस्था रखती है। उसकी पुत्री के नामकरण संस्कार के अवसर पर प्रभा ने गणेश की मूर्ति को मिट्टी का ढेला समझ कर उससे बर्तन साफ़ कर लिए। इस पर भाभी खूब कुहराम मचाती है। उसे अंधविश्वास है कि इस प्रकार गणेश जी के अनादर का कुफल उसकी बच्ची को भोगना पड़ेगा। उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। वह आशंका जताते हुए कहती है कि अब इस घर में कुछ न कुछ अनर्थ होगा। इस प्रकार पूरे उपन्यास में उसे एक मध्यवर्गीय परंपरागत परिवार की भाभी के रूप में चित्रित किया गया है।



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