1.

सार्वजनिक बचत का अर्थ देकर इनके लाभ व मर्यादाएँ समझाइये ।

Answer»

सार्वजनिक बचत (Public Deposits) : कम्पनी को जब अल्पकालीन पूँजी की आवश्यकता होती हैं तब आम जनता से इस बचत के माध्यम से जो पूँजी प्राप्त की जाती है उसे सार्वजनिक बचत कहते हैं । सार्वजनिक बचत द्वारा पूँजी निश्चित समय 6 मास से 3 वर्ष तक की अवधि के लिए होती है । विनियोजित रकम पर निश्चित दर से ब्याज मासिक, त्रिमासिक, अर्द्धवार्षिक या वार्षिक रुप . से अथवा पकने की तारीख पर मूलधन के साथ रकम चुकाई जाती है ।

प्रारम्भ के वर्षों में अहमदाबाद व बम्बई की सूती कपड़े की मिलों में लोग इस प्रकार की बचत के रूप में पूँजी लगाते थे । क्रमशः चाय उद्योग, जूट (सन) उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, चीनी उद्योग इत्यादि में यह प्रथा प्रचलित बनी है । किसी संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी होने से ऐसी बचत से आसानी से पूँजी प्राप्त की जा सकती है । सार्वजनिक बचत पर ब्याज की दर बैंक की अपेक्षा अधिक होती है । इसलिए आमजनता अपनी बचत रखने के लिए आकर्षित होती है । ऐसी बचत सुन के साथी के समान होती है, दुःख के साथी की तरह नहीं । क्योंकि कमजोर अथवा कम ख्याति प्राप्त कम्पनियों में आम जनता ऐसी बचत के रूप में पूँजी नहीं लगाती है । सन् 2013 कम्पनी कानून की व्यवस्था के अनुसार बैंकिंग व बिन बैंकिंग फाइनेंस के अलावा सार्वजनिक बचत आम जनता के पास से स्वीकार नहीं कर सकती ।

लाथ : (Advantages of Public Deposits):

  1. किसी भी प्रकार की गारंटी या मिलकत गिरवी रख्खे बिना पूँजी सरलता से मिलती है । मिलकतों पर बोझ नहीं रहता है ।
  2. डिपोजिट धारकों का कंपनी पर किसी प्रकार का दबाव नहीं रहता है कारण कि डिपोजिट असंख्य लोगों से छोटी-बड़ी रकम के रूप में प्राप्त की जाती है । इस प्रकार डिपोजिट धारकों का संचालन में कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है ।
  3. इक्विटी पर के व्यापार का लाभ मिलता है ।
  4. आवश्यकतानुसार डिपोजिट रखकर अतिरिक्त डिपोजिट वापस कर सकते हैं और ब्याज चुकाने से मुक्ति मिल जाती है ।
  5. बैंक ब्याज की तुलना में यहाँ पर ब्याज की दर नीची रहती है इसलिए यह डिपोजिट सस्ती पड़ती है ।
  6. डिपोजिट वापस करते समय कंपनी की कार्यशील पूँजी में कमी नहीं आती है । नयी डिपोजिट स्वीकार करके पुरानी डिपोजिट की रकम लौटा दी जाती है ।
  7. यदि वही डिपोजिट बार-बार रखी जाये तो कंपनी को दीर्घकालीन ऋण की प्राप्ति होती है ।

मर्यादाएँ :

  1. सार्वजनिक बचत सुख की साथी है । मात्र कंपनी के अच्छे दिनों में ही लोग बचत रखते हैं । आर्थिक मंदी या कंपनी की प्रतिष्ठा कम हो तब डिपोजिट वापस माँग लेते हैं ।
  2. कंपनी की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़े तब विनियोग-कर्ता बचत वापस प्राप्त करने के लिए भारी उत्साह दिखाते हैं और कंपनी की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो जाती है ।
  3. डिपोजिट प्राप्त करने का खर्च भी चुकाना पड़ता है । दलाल व वित्तीय सलाहकारों को दलाली व कमीशन देना पड़ता है ।
  4. डिपोजिट किसी भी प्रकार की कंपनी की मिलकत गिरवी रख्खे बिना प्राप्त की जाती है । इसलिए यदि संचालन पर्याप्त विवेक रख्ने बिना रकम का उपयोग करें तो पूँजी की कार्यक्षमता घटती है, आय घटती है और अतिपूँजीकरण की स्थिति पैदा होती है ।
  5. नयी कंपनियों की बाजार में प्रतिष्ठा स्थापित न होने से उन्हें इस प्राप्ति-स्थान द्वारा पूँजी एकत्र करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।
  6. सट्टाखोरी को प्रोत्साहन मिलता है । डिपोजिट सरलता से मिलने से संचालक व्यापार के अधिक विस्तार के लिए ललचाते हैं ।
  7. पूँजी बाजार के विकास को मर्यादित करती है । इकाईयाँ प्रतिभूतियाँ कम प्रमाण में निर्गमित करती हैं ।


Discussion

No Comment Found