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‘सार्वजनिक निगम को सर्वश्रेष्ठ-व्यवस्था स्वरूप कहा जाता है क्योंकि इसे स्वायत्तता दी जाती है ।’ इस विधान को समझाइए ।

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सार्वजनिक निगम को अपने व्यवस्था-संचालन (प्रशासन) के लिए अन्य धंधादारी संस्थाओं की तरह संपूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है । जिस कानून के अन्तर्गत निगम का सर्जन हुआ रहता है उसकी मर्यादा में रहकर और संसद तथा प्रधान द्वारा निश्चित किये गये सामान्य नीति विषयक तथा मार्गदर्शक सिद्धांतों की मर्यादा में रहकर वह प्राप्त सभी अधिकारों का उपभोग करती है । उसके दैनिक कार्य में संसद या प्रधान या अन्य सरकारी अधिकारी दखलअंदाजी नहीं करते हैं । इस कारण निगम के संचालक पूर्ण आत्मविश्वास के साथ निगम का संचालन करते हैं । इसके उपरांत सरकार द्वारा प्राप्त पूंजी के बावजूद पूंजीकीय लेन-देन के मामले में संपूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है । निगम के खर्च का देश के सामान्य बजट में समावेश नहीं किया जाता है । निगम अपने धंधे के लिए योग्य लगे उस प्रकार आय प्राप्त कर सकता है तथा खर्च कर सकता है । निगम की मुद्राकीय स्वायत्तता के कारण निगम की मालिकी की पूंजी सरकार की तथा उधार पूंजी सरकार की या अन्य स्रोतों से प्राप्त करता है । अतः सार्वजनिक निगम सर्वश्रेष्ठ स्वरूप माना जाता है ।



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