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सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व संविधान और उसके द्वारा आयोजित सरकार, शरीर एवं मस्तिष्क हैं तथा लोक सेवा आयोग हाथ के समान है। शासन को ही सही ढंग से चलाने के लिए कुशल, सुयोग्य, दक्ष, विद्वान् तथा ईमानदार पदाधिकारियों की उतनी ही आवश्यकता है जितनी मनुष्य को वायु की तथा मछली को पानी की। राज्य के द्वारा मनुष्य अपनी सारी इच्छाएँ पूरी करना चाहता है। यह तभी सम्भव है जब राज्य की शासन नीति को कार्यान्वित करने वाले केवल योग्य ही नहीं, अपितु पूर्ण रूप से सचेत एवं अनुभवशील व्यक्ति हों। लोक सेवा आयोग इसी कार्य को सम्पन्न करता है। ये स्थायी होते हैं। और इनके फलस्वरूप इनमें कार्य करने वाले व्यक्ति राज्य कार्य-प्रणाली के विषय में जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों अथवा मन्त्रियों से अधिक व्यावहारिक ज्ञान रखते हैं। किसी भी सरकारी नीति का कुशल संचालन लोक सेवा के अन्तर्गत कार्य करने वाले मनुष्यों की दक्षता एवं कार्यकुशलता पर निर्भर रहता है। विलोबी का मत है कि “सार्वजनिक सेवाओं के प्रशासन के सम्बन्ध में कोई केन्द्रीय व्यवस्था करना बहुत आवश्यक है। सेवकों की नियुक्ति और उनके सामान्य प्रशासन के लिए एक केन्द्रीय निकाय होना चाहिए, जो निरन्तर इस बात को देखे कि जिन सिद्धान्तों पर सेवाओं की नियुक्ति होती है, उन सिद्धान्तों का पालन होता है अथवा नहीं।” इसी उद्देश्य से भारतीय संविधान में अखिल भारतीय सार्वजनिक सेवाओं के लिए एक ‘संघीय लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है। साथ ही प्रत्येक राज्य में भी ‘राज्य लोक सेवा आयोग’ की स्थापना की गयी है। लोक सेवा आयोग का कार्य सरकारी अधिकारियों की नौकरी की दशाएँ, नियुक्ति, पदोन्नति आदि के सन्दर्भ में सरकार को परामर्श देना होता है। |
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