InterviewSolution
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Sanskrit shlok on friendship with meaning |
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Answer» Answer: जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति !!अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जटिलता को हर लेता है, हमारी बोली सच बोलने लगती है, इससे मान और उन्नति बढती है और पाप मिट जाते है| ......................................................चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः !चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः !!इस दुनिया में चन्दन को सबसे अधिक शीतल माना जाता है पर चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होती है लेकिन एक अच्छे मित्र चन्द्रमा और चन्दन दोनों से शीतल होते है| ......................................................वनानी दहतो वन्हे: सखा भवति मारुतः!स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदम !!जब जंगल में आग लग जाती है तो हवा उसका मित्र बन जाता है, और आग को फ़ैलाने में उसकी मदद करता है, लेकिन वही हवा एक छोटी से चिंगारी को पलक झपकते हुए बुझा देती है। इसलिए कमजोर व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता है। ......................................................कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं । ......................................................जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है । दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है । ......................................................ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः।तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृतिः ॥पुत्र वही है, जो पिता का भक्त है । पिता वही है,जो पोषक है, मित्र वही है, जो विश्वासपात्र हो । पत्नी वही है, जो हृदय को आनन्दित करे । ......................................................न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥कुमित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए और मित्र पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए । कभी कुपित होने पर मित्र भी आपकी गुप्त बातें सबको बता सकता हैं । ......................................................परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए । ......................................................♡AnswEr♡ HOPE IT HELPS YOU .................................................................................. HI PLEASE MARK THIS ANSWER AS BRAINLIST ANSWER. ....................................................................... PLEASE FOLLOW ME ........................................................................ PLEASE THANK MY 15 ANSWER ........................................................................ GIVE ❤️ TAKE THANKS ........................................................................ |
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