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‘सदाचार का तावीज़’ पाठ में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

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‘सदाचार का तावीज़’ पाठ मूल रूप से एक व्यंग्यात्मक रचना है। इस रचना के माध्यम से व्यंग्यकार लेखक हरिशंकर परसाई कहना चाहते हैं कि केवल भाषणों, कार्यकलापों, पुलसिया कार्यवाही, नैतिक स्लोगनों, वाद-विवाद आदि के ज़ोर से कभी भी भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए समाज में व्यक्ति को नैतिक स्तर दृढ़ करना होगा। जब व्यक्ति की नैतिकता में विकास होगा तभी व्यक्ति समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकेगा। देश में कार्यरत सभी कर्मचारियों को जब उनकी आवश्यकतानुसार पर्याप्त वेतन दिया जाएगा तब कहीं जाकर भ्रष्टाचार की नकेल कसी जा सकती है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं बल्कि इसकी जिम्मेदारी पूरे समाज की है, जिसे पूरी ईमानदारी से हमें निभाना चाहिए।



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