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Answer» शीतयुद्ध का अर्थ एवं परिभाषा शीतयुद्ध एक ऐसी स्थिति है जिसे ‘उष्ण शान्ति’ कहा जा सकता है। ऐसी स्थिति में न तो ‘पूर्ण रूप से शान्ति रहती है और न ही वास्तविक युद्ध होता है, बल्कि शान्ति और युद्ध के बीच ” अस्थिरता बनी रहती है। यह स्थिति युद्ध की प्रथम सीढ़ी है जिसमें युद्ध के वातावरण का निर्माण किया जाता है। इस दौरान महाशक्तियाँ एक-दूसरे से भयभीत रहती हैं। दूसरे शब्दों में, शीतयुद्ध की ऐसी स्थिति होती है जिसमें युद्ध तो किसी भी क्षेत्र में नहीं होता, किन्तु हर समय युद्ध की-सी स्थिति बनी रहती है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीतयुद्ध सोवियत संघ तथा अमेरिका के पारस्परिक सम्बन्धों की एक ऐसी शोचनीय दशा थी जिसमें दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध शत्रुता का विचार रखते थे। वे शत्रु-युद्ध न लड़कर मनोवैज्ञानिक युद्ध से एक-दूसरे को निरन्तर नीचा दिखाने का प्रयत्न करते थे। इस युद्ध के लिए रणक्षेत्र के स्थान पर मानव मस्तिष्क का प्रयोग किया गया था। यह वैचारिक युद्ध था। इसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टि से नीचा दिखाने के लिए प्रयत्न करते थे। फ्लेमिंग के अनुसार, “शीतयुद्ध का उद्देश्य शत्रुओं को अलग-थलग रखना (Isolate Policy) और मित्रों को जीतना होता है।” ग्रीब्स के अनुसार, “शीतयुद्ध परमाणु युग में एक ऐसी तनावपूर्ण स्थिति है। जो शस्त्र-युद्ध से कुछ हटकर है।” एम० एस० राजन के अनुसार, “शीतयुद्ध शक्ति संघर्ष की मिली-जुली राजनीति का परिणाम है। दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है, दो परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है, विरोधी चिन्तन-पद्धतियों तथा संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जो कि समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलती रही है।” | पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “शीतयुद्ध पुरातन शक्ति सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप है। यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो नाभिकीय शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है।” के० पी० एस० मेनन के अनुसार, “शीतयुद्ध जैसा कि विश्व ने अनुभव किया, दो विचारधाराओं, दो पद्धतियों, दो गुटों, दो राज्यों और जब वह अपनी पराकाष्ठा पर था तो दो व्यक्तियों के मध्य उग्र संघर्ष था; दो विचारधाराएँ थीं—पूँजीवाद तथा साम्यवाद, दो पद्धतियाँ थीं—संसदीय लोकतन्त्र तथा जनवादी जनतन्त्र, बुर्जुआ जनतन्त्र तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही। दो गुट थे-नाटो तथा वारसा पैक्ट। दो राज्य थे-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ। दो व्यक्ति थे-जोसेफ स्टालिन तथा जॉन फॉस्टर डलेस।” करेन मिंग्स्ट के अनुसार –“शीतयुद्ध का आशय दो महाशक्तियों के बीच उच्चस्तरीय तनावों व प्रतियोगिता से था जिसमें दोनों ने प्रत्यक्ष सैनिक भिड़न्त को दूर रखा। परमाणु यन्त्रों की होड़ ने द्विध्रुवीयता को जन्म दिया जिसमें हर पक्ष ने बड़ी सावधानी से काम किया कि कहीं वे तीसरे विश्व युद्ध के कगार के समीप न आ जाएँ। इस प्रकार शीतयुद्ध ‘शस्त्र-युद्ध की श्रेणी में न रखकर युद्ध का वातावरण कहा जा सकता है क्योंकि शीतयुद्ध के काल में युद्ध के समान वातावरण बना रहता था। अत: यह एक कुटनीतिक दाँव-पेचों से लड़ा जाने वाला युद्ध है जो कभी भी ‘वास्तविक युद्ध’ के विनाशकारी मार्ग का रूप धारण करने की सम्भावना बनाए रखता है। शीतयुद्ध के लक्षण शीतयुद्ध के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं ⦁ शीतयुद्ध ऐसा संघर्ष था जो सोवियत संघ तथा अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों के मध्य था। ⦁ शीतयुद्ध प्रचार के माध्यम से तथा वाक् युद्ध के रूप में विश्व राजनीति में व्याप्त हो गया था। ⦁ शीतयुद्ध का प्रभावशाली लक्षण यह था कि इसमें दोनों महाशक्तियों प्रचार, गुप्तचरी, सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक सन्धियाँ तथा विभिन्न प्रकार के संगठनों का निर्माण करती रहती थीं। ऐसा करके वे अपनी शक्तियों को सुदृढ़ कर रही थीं। ⦁ दोनों शक्तियों ने विश्व में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। ⦁ यह युद्ध भयानक था क्योंकि इसके भड़क उठने का कोई निश्चित समय नहीं था। ⦁ यह युद्ध मस्तिष्क से लड़ा जाने वाला विचारों का युद्ध था। अत: इससे सभी देश भयभीत रहते थे। ⦁ यह वास्तविक युद्ध से भी अधिक भयानक था।
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