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संगणना (सर्वेक्षण) अनुसंधानें क्या है? इसके गुण व दोष बताइए।

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अनुसंधान क्षेत्र की संपूर्ण इकाइयाँ सामूहिक रूप से ‘समग्र’ कहलाती हैं। समग्र दो प्रकार का होता है

(अ) निश्चित अथवा अनन्त समग्र – निश्चित समग्र में इकाइयों की संख्या निश्चित होती है; जैसे—किसी कॉलेज के छात्र या मिल के श्रमिक। इसके विपरीत, अनंत समग्र में इकाइयों की संख्या भी अनंत होती है; जैसे-नवजात शिशुओं का भार अथवा स्वास्थ्य के विषय में अनुसंधान।
(ब) वास्तविक अथवा काल्पनिक समग्र – ठोस विषय वाले समग्र को वास्तविक समग्र कहते हैं; जैसे – विश्वविद्यालय के छात्र। काल्पनिक विषय वाले समग्र को काल्पनिक समग्र कहते हैं; जैसे – सिक्कों की उछाल के आधार पर चित्र-पट के गिरने की संख्या में बना समग्र।
अनुसंधान के प्रकार अनुसंधान की प्रकृति दो प्रकार की हो सकती है
(अ) संगणना अनुसंधान,
(ब) प्रतिदर्श अनुसंधान।

संगणना अनुसंधान

जब अनुसंधान के विषय में संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है तो वह ‘संगणना अनुसंधान’ कहलाता है। इस रीति के अनुसार, अनुसंधान करते समय अनुसंधानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसंधान से संबंधित प्रत्येक इकाई के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना।

उपयुक्तता – संगणना अनुसंधान का प्रयोग वहाँ उचित है|
⦁    जहाँ समग्र या क्षेत्र का आकार सीमित हो।
⦁    जहाँ सांख्यिकीय इकाई में विजातीयता अथवा विविध गुण पाए जाते हैं।
⦁    जहाँ परिशुद्धता का ऊँची स्तर आवश्यक हो।
⦁    जहाँ विषय का गहन अध्ययन करना हो अथवा व्यापक सूचनाएँ एकत्र करनी हों।

संगणना अनुसंधान के गुण
⦁    गहन अध्ययन–इस रीति द्वारा विषय का गहन अध्ययन संभव है। इससे अनुसंधानकर्ता को उस विषय को पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
⦁    अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय परिणाम-इस रीति द्वारा संकलित समंक अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। अत: उनसे निकाले गए परिणाम भी अधिक सत्य एवं विश्वसनीय होते हैं।
⦁    विस्तृत जानकारी—इस रीति द्वारा समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है। अत: अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आ जाते हैं।
⦁    उपयुक्तता-जब समग्र का आकार सीमित हो और सांख्यिकीय इकाइयों में विजातीयता अथवा विविधता का गुण पाया जाता हो तो यह रीति सर्वथा उपयुक्त होती है।
⦁    कुछ दशाओं में आवश्यक-यदि जाँच की प्रकृति ऐसी हो कि सभी पदों का समावेश आवश्यक हो तो इस रीति का प्रयोग आवश्यक होता है।

संगणना अनुसंधान के दोष
⦁    अधिक व्ययसाध्य-यह विधि अत्यधिक खर्चीली है, क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता को समग्र की प्रत्येक इकाई से संबंध स्थापित करना पड़ता है।
⦁    अधिक समय व परिश्रम-इस रीति में समय भी अधिक लगता है और अनुसंधानकर्ता को परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है।
⦁    सांख्यिकीय विभ्रम—इस रीति में सांख्यिकीय विभ्रम (Statistical errors) का पता नहीं लगाया जा सकता।
⦁    व्यापक संगठन की आवश्यकताइस रीति द्वारा अनुसंधानकर्ता को कार्य में व्यापक संगठ की आवश्यकता पड़ती है।
⦁    अनेक परिस्थितियों में असंभव-यदि समग्र अनंत है, अनुसंधान क्षेत्र विशाल व जटिल है, समग्र की प्रत्येक इकाई से संपर्क स्थापित करना संभव नहीं है अथवा अनुसंधान विधि में समग्र की संपूर्ण इकाइयाँ नष्ट हो जाती हैं तो संगणना अनुसंधान असंभव हो जाता है।



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