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संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण के सन्दर्भ में किये गये सरकारी प्रयास पर टिप्पणी लिखिए।

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चेचक, मलेरिया, हैजा, प्लेग, फाइलेरिया, क्षय रोग (टी०बी०), कुष्ठ रोग आदि संक्रामक रोगों के नियन्त्रण को नियोजन काल में उच्च प्राथमिकता दी गयी।
चेचक का उन्मूलन कर दिया गया और देश को अप्रैल, 1977 ई० से इस रोग से मुक्त घोषित कर दिया गया है।
राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम 1958 ई० में आरम्भ किया गया। वर्ष 1976 ई० में जहाँ 65 लाख व्यक्ति मलेरिया से पीड़िते हुए, वहीं चलाये गये कार्यक्रमों के कारण वर्ष 2010 में केवल 12 लाख व्यक्ति ही इस रोग से पीड़ित हुए।
देश की जनसंख्या का लगभग पाँचवाँ भाग फाइलेरिया से प्रभावित क्षेत्रों में रहता है। उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं आन्ध्र प्रदेश के कुछ चुने हुए जिलों में प्रयोग के तौर पर 1978 में फाइलेरिया नियन्त्रण
की एक व्यूहरचना लागू की गयी थी। मार्च, 1989 ई० में राष्ट्रीय फाइलेरिया नियन्त्रण कार्यक्रम लागू । किया गया, जिससे इस संक्रामक रोग को नियन्त्रित करने में पर्याप्त सफलता मिली है।
भारत में क्षय रोग (टी०बी०) एक मुख्य स्वास्थ्य समस्या है। पूरे विश्व के क्षय रोगियों का एक-तिहाई भाग भारत में है। वर्तमान में क्षय रोग पूर्णत: उपचार योग्य है। देश के राष्ट्रीय क्षय रोग नियन्त्रण कार्यक्रम को विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।
कुष्ठ रोग यद्यपि देश के सभी भागों में पाया जाता था, किन्तु तमिलनाडु, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, नागालैण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मणिपुर तथा बिहार में इस रोग का विस्तार बहुत अधिक था। वर्तमान में कुष्ठ रोग पर नियन्त्रण पा लिया गया है तथा अब 13 राज्यों में प्रति 10,000 जनसंख्या पर केवल एक कुष्ठ रोगी है। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा हैं।
देश में एड्स सर्वाधिक गम्भीर जनस्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आया है। वर्ष 1998 से राष्ट्रीय स्तर पर एक निगरानी कार्यक्रम को हाथ में लिया गया है जो एच०आई०वी० के जीवाणुओं से ग्रस्त कुल रोगियों की संख्या का अनुमान लगाता है। एड्स के सर्वाधिक मामले कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर तथा नागालैण्ड राज्यों में पाये गये हैं। राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।



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