InterviewSolution
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संसार में जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए।याजनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का वर्णन कीजिए। विश्व में एशिया के असमान वितरण की व्याख्या कीजिए तथा ऐसे असमान वितरण के किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए। याजनसंख्या-वृद्धि के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए।याजनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों की समीक्षा कीजिए। याविश्व की जनसंख्या का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(क) जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक(ख) जनसंख्या का वितरण। |
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Answer» मानव- भूगोल के अध्ययन में मानवे का केन्द्रीय स्थान है, क्योकि मानव ही अपने प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण का उपभोग करता है, उनसे प्रभावित होता है और उनमें अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन करता है। पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय मानव द्वारा सम्पन्न होते हैं। इसी कारण पृथ्वीतल पर जनसंख्या कितनी है, उसका वितरण किन प्रदेशों में अधिक या कम है, उसमें कितनी वृद्धि अथवा कमी हुई है, उसकी क्षमता कैसी है तथा उसकी समस्याएँ क्या हैं आदि सभी तथ्यों का अध्ययन करना बड़ा महत्त्वपूर्ण है। जनसंख्या अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वीतल के विभिन्न प्रदेशों में जनसंख्या की स्थिति, वृद्धि अथवा कमी, उसकी भिन्नताएँ, घनत्व, आवास-प्रवास, शारीरिक शक्ति, आयु-वर्ग, पुरुष-महिला अनुपात तथा जनसंख्या के आर्थिक विकास की अवस्थाओं का पता लगाना होता है। जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले कारक जनसंख्या का घनत्व – जनसंख्या के घनत्व का आशये किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है। घनत्व ज्ञात करने के लिए किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। घनत्व से जनसंख्या के किसी क्षेत्र में संकेन्द्रण की मात्रा का बोध होता है। जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण पर निम्नलिखित भौगोलिक एवं अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है – 1. स्थिति (Location) – किसी प्रदेश की स्थिति का प्रभाव उसके समीपवर्ती देशों, परिवहन, व्यापार तथा मानव इतिहास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, हिन्द महासागर में भारत की स्थिति केन्द्रीय होने के कारण मध्य-पूर्व के देशों तथा पूर्वी गोलार्द्ध के देशों के साथ समुद्री व्यापार की सुविधा रखने वाली है। विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या तटीय भागों तथा उनकी सीमा-पेटियों में निवास करती है। भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर प्राचीन काल से ही मानव-बस्तियों का विकास होता रही हैं। यहाँ मछलियों की प्राप्ति, सम-जलवायु, समतल मैदानी भूमि जिसमें कृषि, उद्योग, परिवहन एवं मानव-आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इसीलिए इन भागों में सघन जनसंख्या का संकेन्द्रण हुआ है। 2. जलवायु (Climate) – सभी कारकों में जलवायु महत्त्वपूर्ण साधन है, जो जनसंख्या को । किसी स्थान पर बसने के लिए प्रेरित करती है। विश्व के सबसे घने बसे भाग मानसूनी प्रदेश तथा सम-शीतोष्ण जलवायु के प्रदेश हैं। चीन, जापान, भारत, म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश तथा पूर्वी-द्वीप समूह की जलवायु मानसूनी है, जबकि पश्चिमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य की जलवायु सम-शीतोष्ण है; अतः इन देशों में सघन जनसंख्या का निवास हुआ है। ⦁ चीन एवं जापान, विश्व में उपजाऊ भूमि के कारण नदी-घाटियाँ भी सघन रूप से बसी हैं। 4. स्वच्छ जल की पूर्ति (Supply of Clean water) – जल मानव की मूल आवश्यकता है। जल की आवश्यकता मुख्यत: तीन प्रकार की है – ⦁ घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल की पूर्ति अतः जिन प्रदेशों एवं क्षेत्रों में शुद्ध एवं स्वच्छ मीठे जल की पूर्ति की सुविधी होती है, वहाँ जनसंख्या भी अधिक निवास करने लगती है; जैसे-नदी-घाटियों एवं समुद्रतटीय क्षेत्रों में। 5. मिट्टियाँ (Soils) – जनसंख्या का मूल आधार भोजन है जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकती। शाकाहारी भोजन प्रत्यक्ष रूप से एवं मांसाहारी भोजन अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होते हैं। जिन प्रदेशों की मिट्टियाँ उपजाऊ होती हैं, वहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों में नदियों की घाटियों में मिट्टी की अधिक उर्वरा शक्ति के कारण सघन जनसंख्या निवास कर रहा है। 6. खनिज पदार्थ (Minerals) – जिन प्रदेशों में खनिज पदार्थों का बाहुल्य होता है, वहाँ उद्योगों के विकसित होने की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं। इस कारण ये क्षेत्र जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा विषम परिस्थितियों में भी इन प्रदेशों में सघन जनसंख्या का आवास रहता है। यूरोप महाद्वीप के सघन बसे प्रदेश कोयले एवं लोहे की खानों के समीप ही स्थित मिलते हैं। इसी प्रकार रूस के उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जहाँ खनिज भण्डार अधिक हैं। 7. शक्ति के संसाधन (Power Resources) – उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के संचालन में कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत एवं प्राकृतिक गैस की आवश्यकता होती है तथा इनकी प्राप्ति वाले क्षेत्रों में जनसंख्या भी सघन रूप में निवास करने लगती है। 8. आर्थिक उन्नति की अवस्था (Stage of Economic Progress) – किसी प्रदेश की आर्थिक स्थिति में वृद्धि होने पर उसकी जनसंख्या-पोषण की क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है; अत: इन प्रदेशों में जनसंख्या भी अधिक निवास करने लग जाती है। कृषि उत्पादन कम होने पर भी इन प्रदेशों में खाद्यान्न विदेशों से आयात कर लिये जाते हैं, क्योंकि आयात करने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति अनुकूल होती है। 9. तकनीकी प्रगति का स्तर (Level of Technological Progress) – तकनीकी विकास के द्वारा नवीन यन्त्रों, उपकरणों एवं मशीनों के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादों में भी वृद्धि होती है एवं ऋतु तथा जलवायु की विषमताओं पर नियन्त्रण कर लिया जाता है। इन सुविधाओं के स्तर में वृद्धि से जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। यूरोप के औद्योगिक प्रदेशों में 700 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक जन-घनत्व इसी कारण मिलता है। 10. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social and Cultural Factors) – सामाजिक रीतिरिवाजों, धार्मिक विश्वासों एवं जीवन के प्रति दृष्टिकोण का प्रभाव जनसंख्या वितरण पर भी पड़ता है। जिस समाज में लोग भाग्यवादी होते हैं, उनमें परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के प्रति विश्वास एवं रुचि न होने के कारण अधिक सन्तति से जनसंख्या में वृद्धि होती चली जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में मुस्लिम लोगों का परिवार-कल्याण के प्रति धार्मिक विश्वास न होने के कारण उनकी जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। 11. राजनीतिक कारक (Political Factors) – राजनीतिक नियमों का प्रभाव भी जनसंख्या वितरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ- ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक है, जब कि ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का केवल 1/50 भाग ही है। इसका प्रमुख कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति (White Policy) है जो गोरी जातियों के अतिरिक्त दूसरी नस्ल के लोगों को ऑस्ट्रेलिया में बसने से रोकती है। 12. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) – किसी प्रदेश में मानव के कम या अधिक निवास के लिए उसकी छाँट दो सीमाओं के मध्य रहती है। एक ओर प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा निश्चित की हुई सीमा तथा दूसरी ओर सरकारी नीति। इस प्रकार कुछ मानव थोड़े संसाधनों के क्षेत्र में बसे होते हैं तथा उनकी जीविकोपार्जन की विधि भी पिछड़ी हुई होती है। ऐसे उदाहरण पर्वतीय तथा वन-क्षेत्रों में अधिक मिलते हैं। विश्व के दक्षिणी महाद्वीपों में ऐसे क्षेत्र अधिक मिलते हैं। 13. पर्यावरण की वांछनीयता (Environmental Desirability) – मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-सांथ परिवहन, संचार आदि साधनों में वृद्धि से विभिन्न प्रदेशों की वांछनीयता में भी परिवर्तन हो जाते हैं। जहाँ आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ अत्यधिक दिखलाई पड़ती हैं, उन क्षेत्रों में मानव के बसने की इच्छा भी अधिक रहती है। उदाहरणार्थ-बिहार राज्य के उत्तरी भाग में कृषि द्वारा सघन जनसंख्या पोषण करने की क्षमता विद्यमान है और दक्षिण की ओर छोटा नागपुर पठारे में खनिज पदार्थों के कारण औद्योगिक विकास की भारी क्षमता है। अत: बिहार राज्य में इन सम्भावनाओं के कारण जनसंख्या भी सघन होती जा रही है। इसके विपरीत सम्भावनाओं की कमी के कारण हिमालय के तराई प्रदेश में जनसंख्या विरल है। 14. अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता (International Interdependence) – वर्तमान समय में विशेषीकरण में वृद्धि के फलस्वरूप सभ्य राष्ट्र अपनी खाद्यान्न आवश्यकता के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन तथा जर्मनी के खाद्यान्न अधिकतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अर्जेण्टाइना आदि देशों से मशीनों के बदले आते हैं; अर्थात् एक देश दूसरे देश की उपज को आसानी से बदल सकता है। इससे विशेषीकरण में वृद्धि होती है तथा अधिक जनसंख्या का पोषण सम्भव हो सकता है। इसी प्रकार जापान ने भी सघन जनसंख्या के पोषण की क्षमता आसानी से प्राप्त कर ली है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने विभिन्न देशों की आर्थिक निर्भरता की अपेक्षा विशेषीकरण को प्रोत्साहन दिया है, परन्तु कभी-कभी राजनीतिक सम्बन्ध खराब होने से विभिन्न देशों में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः इसके लिए एक देश को दूसरे देश की विशेषताओं को उचित प्रकार से समझना चाहिए। |
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