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Answer» संवातन का अर्थ घर के वायुमण्डल में उत्पन्न हो जाने वाली गर्मी, नमी तथा स्थिरता को समाप्त अथवा कम कर देने की प्रक्रिया को संवातन कहते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत घर के कमरों से गर्म, नम व अशुद्ध स्थिर वायु का निष्कासन तथा शुद्ध, शुष्क व शीतल वायु का प्रवेश होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी आवासीय स्थल से अशुद्ध वायु के निष्कासन तथा बाहर से शुद्ध वायु के आगमन की समुचित व्यवस्था ही संवातन है। संवातन के परिणामस्वरूप ही किसी आवासीय स्थल में निरन्तर शुद्ध वायु उपलब्ध होती रहती है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से संवातन की समुचित व्यवस्था अति आवश्यक है। प्राकृतिक साधनों पर आधारित संवतन प्रकृति ने हमारे वातावरण में संवतन की समुचित व्यवस्था की है। प्राकृतिक संवातन मुख्य रूप से वायुमण्डल में होने वाली चूषण, संनयन तथा विसरण नामक क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है। इन तीनों क्रियाओं का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है। (1) चूषण–प्रायः सभी गैसों का संवहन सिद्धान्त रूप से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर होता है। इसे चूषण क्रिया कहते हैं। फुटबॉल का उदाहरण देखें। हवा भरने वाले पम्प से दबाव के साथ फुटबॉल में हवा भरी जाती है। पूरी हवा भर जाने पर फुटबॉल के अन्दर वायु का दबाव वायुमण्डल में उपस्थित वायु के दबाव से अधिक हो जाता है। अब फुटबॉल का वाल्व ढीला करने पर इसके भीतर की वायु कम दबाव वाले वायुमण्डल में तेजी से संवहन करती है और तब तक करती रहती है जब तक कि फुटबॉल के भीतर की वायु का दबाव वायुमण्डल के दबाव के समान नहीं हो जाता। इस सिद्धान्त का उपयोग घर की संवातन व्यवस्था में किया जाता है। (2) संनयन-यह प्रक्रिया प्रायः द्रव पदार्थों व गैसों में होती है। हल्के पदार्थों में यह प्रक्रिया तीव्र होती है। उदाहरण के लिए किसी द्रव पदार्थ को गर्म करने पर इसका प्रथम कण अथवा अणु गर्म होते ही फैलकर व हल्का होकर ऊपर की ओर प्रसारित हो जाता है तथा इसका स्थान अपेक्षाकृत ठण्डा कण ले लेता है। फिर यह भी गर्म होकर प्रसारित हो जाता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है। इसी सिद्धान्त के अनुसार गर्म होने पर कमरे की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है तथा इसके द्वारा रिक्त किए गए स्थान की पूर्ति शीतल वायु द्वारी (कमरे के बाहर से) होती है। इस प्रकार संनयन प्रक्रिया द्वारा कमरे में लगातार शीतल एवं शुद्ध वायु का प्रवेश होता रहता है। (3) विसरण: इस प्रक्रिया में पदार्थ अधिक सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान से कम सान्द्रता अथवा मात्रा वाले स्थान की ओर विसरित करते हैं; उदाहरणार्थ-एक सेण्ट अथवा इत्र की शीशी कमरे के एक कोने में खोलने पर धीरे-धीरे इत्र की सुगन्ध पूरे कमरे में फैल जाती है। इसी प्रकार एक गिलास पानी में स्याही की एक बूंद डालकर हिलाने पर पूरा पानी ही रंगीन हो जाता है। ठोस, द्रव तथा गैस तीनों ही प्रकार के पदार्थों में विसरण की यह प्रक्रिया पाई जाती है। विसरण की प्रक्रिया संवातन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। कमरे की वायु नमी व बाह्य श्वसन की – कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण सान्द्र हो जाती है; अत: यह बाहर (कम सान्द्र वायु) की ओर विसरण करती है तथा कम सान्द्रता वाली शुद्ध व शीतल वायु कमरे में अन्दर की ओर विसरण करती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि कमरे के अन्दर व बाहर की वायु की सान्द्रता समान नहीं हो जाती। संवातन की प्राकृतिक व्यवस्था के लिए उपयोगी उपाय व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए उपयुक्तं संवातन व्यवस्था का होना आवश्यक है। अतः संवातन की उपयुक्त व्यवस्था के लिए निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाना विवेकपूर्ण है (1) मकान की व्यवस्था: नियोजित बस्तियों में आवास-गृहों का निर्माण परस्पर पर्याप्त दूरी पर होना चाहिए, एक-दूसरे से मिले हुए मकानों में वायु का प्रवेश स्वतन्त्र रूप से नहीं हो पाता, जबकि दूर-दूर बने मकानों में वायु का संवातन भली प्रकार से होता है। (2) दरवाजे एवं खिड़कियाँ: मकान में दरवाजे एवं खिड़कियाँ पर्याप्त संख्या में होनी आवश्यक हैं। कमरों में दरवाजों एवं खिड़कियों की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि जिससे वायु आमने-सामने आर-पार सरलता से आ-जा सके। (3) रोशनदान: गर्म होने से वायु हल्की हो जाती है तथा ऊपर की ओर उठती है। अतः गर्म एवं अशुद्ध वायु के निष्कासन के लिए कमरे में रोशनदान का होना अनिवार्य है। रोशनदान का एक लाभ यह भी है कि सूर्य की किरणें इससे कमरे में प्रवेश पाकर हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करती रहती हैं। (4) चिमनी: यह प्राय: रसोई-गृह में निर्मित की जाती हैं। ईंधन के जलने से उत्पन्न धुआँ चिमनी द्वारा ही रसोई-गृह से निष्कासित होता है। इसका लाभ यह है कि गृहिणी न तो घुटन महसूस करती है। और न ही उसके नेत्रों पर धुएँ का कुप्रभाव पड़ता है। आधुनिक युग में धुआँ उत्पन्न करने वाले ईंधन का प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है तथा इसके स्थान पर कुकिंग गैस व विद्युत चूल्हों का उपयोग होने लगा है। अतः अब रसोई-गृह में चिमनी के निर्माण की आवश्यकता लगभग नगण्य हो गई है।
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