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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिएःमानुष हों, तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जो पसु हौं, तो कहा बसु मेरो, चरौ नित नंद की धेनु मँझारन।।पाहन हौं, तो वही गिरि कौ, जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।जो खग हौं, बसेरो करौं मिलि कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन॥ 

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प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रसखान के सवैये’ नामक शीर्षक से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत सवैये में रसखान हर स्थिति में ब्रज गोकुल में ही जन्म लेना चाहते हैं। वह अपना संबंध उन्हीं से जोड़ना चाहते हैं जिनके साथ कृष्ण का संबंध रहा है।

स्पष्टीकरण : इस सवैये के माध्यम से कृष्णभक्त कवि रसखान श्रीकृष्ण पर अनन्य भक्ति तथा ब्रजभूमि के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। कवि अपना संबंध उन्हीं से जोड़ना चाहते हैं जिनका संबंध श्रीकृष्ण से है। रसखान को ब्रजभूमि से इतना लगाव हो गया है कि वे कहते हैं – यदि मेरा अगला जन्म मनुष्य रूप में हो तो मैं ब्रजभूमि में रहनेवाले गोकुल गाँव के ग्वालों में जन्म लूँ। पशु के रूप में मेरा जन्म हो जाये तो मैं नंदबाबा द्वारा चराई जानेवाली गौओं के झुंड में कोई एक गौ बनूँ। पत्थर भी बन जाऊँ, तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे ब्रज की रक्षा के लिए कृष्ण ने छाते के रूप में उठाया था। यदि पक्षी बनूँ, तो कालिंदी नदी के किनारे स्थित कदम्ब के पेड़ों पर वास करने वाले पक्षियों में जन्म लूँ। अर्थात् “कहीं भी रहूँ, कैसे भी रहूँ, ब्रजभूमि का होकर रहूँ” यह भाव स्पष्ट होता है।



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