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ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:भूमि माता है, मैं उसका पुत्र हूँ।

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल हैं।
संदर्भ : जब तक लोगों के मन में भूमि के प्रति स्वाभाविक प्रेम, आदर सेवाभाव नहीं रहता – राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती।
स्पष्टीकरण : मनुष्य अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है, लेकिन बाद में उसका उदर पोषण करनेवाली माता पृथ्वी माता है। पृथ्वी न हो तो अन्न नहीं, जीवन नहीं, संस्कृती नहीं। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप संपादित होता है। इसलिये लेखक कहते है कि भूमि माता है, मैं उसका पुत्र हूँ।



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