1.

“स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी।” स्पष्ट कीजिए।

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विभिन्न शोषणकारी नीतियों एवं गरीबी और बेरोजगारी के परिणामस्वरूप अर्थचक्र बदलते-बदलते ऐसी स्थिति आ गई कि स्वतंत्रता के समय देश का आर्थिक ढाँचा अत्यधिक क्षीण हो गया था। अक्षम कृषि प्रणाली और दूषित भू-स्वामित्व व्यवस्था के नीचे करोड़ों किसान पिस रहे थे। कृषि मूलतः जीवन निर्वाहपरक ही बनी हुई थी। औद्योगिक क्षेत्र में भी स्थिति संतोषजनक न थी। वास्तव में, ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों ने हमारे देश को मुख्य रूप से प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादक के रूप में परिवर्तित कर दिया। कुल राष्ट्रीय आय का केवल 17.1% भाग ही खनन उद्योग तथा लघु उद्योगों से प्राप्त होता था। उत्पादक उद्योगों में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों की प्रधानता थी। इन उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के वर्ग में भी कृषि क्षेत्र से प्राप्त उत्पादन की प्रक्रिया (process) करने वाले उद्योगों का प्रमुख स्थान था। ये उद्योग तकनीकी दृष्टि से अत्यधिक पिछड़े थे। उत्पादकता का स्तर भी निम्न था। पूँजीगत वस्तुओं, विद्युत उपकरणों तथा रसायन उत्पादनों की मात्रा अत्यधिक नगण्ये थी। वास्तव में, यह ब्रिटेन के हितों के अनुकूल ही था कि भारत औद्योगिक दृष्टि से एक पिछड़ा देश रहा। जो थोड़े-बहुत उद्योग देश में स्थापित थे उनमें विदेशी पूँजी की प्रधानता थी।



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