1.

स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र (द्वितीयक क्षेत्र) की क्या स्थिति थीं ।

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कृषि की भाँति औपनिवेशिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का निर्माण नहीं कर पाया। विश्वप्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन होता रहा और आधुनिक औद्योगिक आधार की नींव नहीं रखी गई। इसके पीछे ब्रिटिश सरकार के दो उद्देश्य थे—
⦁    भारत को कच्चे माल का निर्यातक बनाना,

⦁    इंग्लैण्ड के निर्मित माल के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनने देना। इस दौरान जो भी विनियोग हुआ, वह उपभोक्ता उद्योगों के क्षेत्र में ही हुआ; जैसे—सूती वस्त्र, पटसन आदि। आधारभूत उद्योग के रूप में केवल एक उद्योग “टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी’ की 1907 में स्थापना की गई। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीनी, कागज व सीमेंट के भी कुछ कारखाने स्थापित किए गए। अत: पूँजीगत उद्योगों का अभाव ही बना रहा। न केवल औद्योगिक क्षेत्र की संवृद्धि दर बहुत कम थी अपितु राष्ट्रीय आय में इनका योगदान भी बहुत कम था। सार्वजनिक क्षेत्र रेल, बंदरगाह, विद्युत व संचार तथा कुछ विभागीय उपक्रमों तक ही सीमित था।



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