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स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कृषि क्षेत्र की स्थिति पर प्रकाश डालिए।

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ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल में भारत मूलतः एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर थी किंतु कृषि उत्पादकता में निरंतर कमी होती गई, यह लगभग गतिहीन बनी रही। इस गतिहीनता का प्रमुख कारण दोषपूर्ण भू-व्यवस्था प्रणालियाँ थीं जिनमें मध्यस्थों की संख्या बढ़ती जा रही थी। कृषि लाभ के अधिकांश भाग को जमींदार ही हड़प जाते थे। राजस्व व्यवस्था भी जमींदारों के पक्ष में जाती थी। परम्परागत तकनीकी, सिंचाई-सुविधाओं का अभाव और उर्वरकों के नगण्य प्रयोग के कारण कृषि उत्पादकता के स्तर में वृद्धि न हो सकी। कृषि का व्यवसायीकरण सीमित था और नकदी फसलें ब्रिटेन के कारखानों में उपयोग के लिए भेज दी जाती थीं। स्वतंत्रता के समय देश के विभाजन ने भी कृषि व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।



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