1.

तदन्तरं संस्कृतवृत्तपत्रिकाणां सध्या सवेगं वृद्धिंगता प्रश्न निर्माण उत्तर त​

Answer»

ANSWER:

EXPLANATION:

`शिवताण्डवस्तोत्रम्` के रचयिता दशानन रावण ने इक्कीस श्लोकों के इस ताण्डव-स्तोत्र का शुभारम्भ भगवान शिव के ताण्डव-रत रूप की अभ्यर्थना (प्रार्थना) करते हुए किया है । शिव की घनी रुक्ष (रूखी ) जटा को घने जंगल की उपमा देते हुए वह कहता है कि जटा रुपी सघन वन से निकलती हुई गंगा के प्रवाह से पवित्र किये हुए स्थल पर, गले में विशाल सर्पों की माला पहने हुए और डमरू से डम-डम डम-डम का महाघोष करते हुए शिव ने प्रचंड ताण्डव किया, वे शिव हमारा कल्याण करें, हमारे हितों की रक्षा करें । रावण ताण्डव-नृत्य करते हुए अपने आराध्य पर मुग्ध है और भलीभांति जानता है कि विकराल सर्पमाल धारण करने से भयंकर दिखने वाले भगवान शिव वास्तव में शुभंकर हैं, शंकर (शुभ करने वाले) हैं ।

OKAY



Discussion

No Comment Found