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तृतीय मैसूर युद्ध के कारण व घटनाओं पर एक टिप्पणी लिखिए। श्रीरंगपट्टम की संधि की शर्ते लिखिए।

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तृतीय मैसूर युद्ध के कारण

⦁    टीपू ने विभिन्न आन्तरिक सुधारों द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की, जिसके कारण अंग्रेजों, निजाम एवं मराठों को भय उत्पन्न हो गया।
⦁    1787 ई० में फ्रांस एवं टर्की में टीपू द्वारा अपने दूत भेजकर उनकी मदद प्राप्त करने की कोशिश की गई, जिससे अंग्रेजों में शंका उत्पन्न हो गई।
⦁    मंगलौर सन्धि टीपू व अंग्रेजों के मध्य एक अस्थायी युद्धविराम था, क्योंकि दोनों की महत्वाकांक्षाओं व स्वार्थों में टकराव था। अत: दोनों गुप्त रूप से एक-दूसरे के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर रहे थे।
⦁    अंग्रेजों द्वारा टीपू पर यह आरोप लगाया गया कि उसने अंग्रेजों के विरुद्ध फ्रांसीसियों से गुप्त समझौता किया है।
⦁    कार्नवालिस और टीपू के बीच संघर्ष के कारणों के सम्बन्ध में इतिहासकारों के दो मत हैं। कुछ का मानना है कि कम्पनी ने भारत में साम्राज्य–विस्तार की नीति के कारण टीपू से संघर्ष किया। कुछ का कहना है कि टीपू ने स्वयं ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी थीं, जिससे संघर्ष अवश्यम्भावी हो गया था।
⦁    टीपू ने ट्रावनकोर के हिन्दू शासक पर आक्रमण कर दिया, जिसको अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त था। टीपू की इस कार्यवाही पर अंग्रेजों ने युद्ध की घोषणा कर दी।

घटनाएँ- 29 दिसम्बर, 1789 ई० को टीपू ने ट्रावनकोर के राजा पर आक्रमण कर दिया। कार्नवालिस ने कुछ प्रदेशों का लालच देकर 1 जून, 1790 ई० को मराठों व 4 जुलाई, 1790 ई० को निजाम से सन्धि कर ली। इस प्रकार कार्नवालिस ने चतुरता से दोनों शक्तियों को साथ लेकर तीसरी भारतीय शक्ति को कुचलने की चाल चली। कार्नवालिस 1791 ई० में बंगलौर (बंगलुरु) पर अधिकार करने के बाद टीपू की राजधानी श्रीरंगपट्टम के नजदीक पहुँच गया। टीपू ने भी आगे बढ़कर कोयम्बटूर पर अधिकार कर लिया परन्तु शीघ्र ही टीपू पराजित होने लगा। अन्त में अंग्रेजों ने उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टम को भी घेरकर 1792 ई० में उस पर अधिकार कर लिया। 23 मार्च, 1792 को दोनों पक्षों के बीच श्रीरंगपट्टम की सन्धि हो गई।

श्रीरंगपट्टम की सन्धि- मार्च 1792 ई० में टीपू श्रीरंगपट्टम की सन्धि करने के लिए बाध्य हो गया। इस समय यदि कार्नवालिस चाहता तो टीपू के समस्त राज्य को छीन सकता था। परन्तु उसे भय था कि मराठों तथा निजाम के साथ विभाजन करने की विकट समस्या उत्पन्न हो जाएगी, अतः उसने टीपू का सम्पूर्ण राज्य तो नहीं छीना परन्तु उसे शक्तिहीन बनाकर छोड़ दिया। सन्धि के द्वारा टीपू का आधा राज्य छीन लिया गया तथा तीनों शक्तियों को वितरित कर दिया गया। सबसे बड़ा भाग कम्पनी को मिला। कम्पनी को मालाबार, कुर्ग तथा डिण्डीगान के प्रदेश मिले, निजाम को कृष्णा नदी के तटीय प्रदेश दिए गए तथा कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के मध्य का भाग मराठों को प्राप्त हुआ। युद्ध के व्यय के रूप में टीपू को 30 लाख रुपए तथा अपने दो पुत्र बन्धक
के रूप में देने पड़े।



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