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उददीयमान भारत में माध्यमिक विद्यालय शिक्षकों की भूमिका को समझाइए​

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विश्व गुरु के नाम से प्रसिद्ध हमारा देश भारत आज भी शिक्षा के नये आयाम छू रहा है, फिर चाहे वह विद्यालयी शिक्षा हो या महा विद्यालय, विश्वविद्यालय में प्रदान की जाने वाली औपचारिक, अनौपचारिक, आधुनिक शिक्षा ही हो…शिक्षण में शिक्षक और शिक्षिका की निरंतर बढ़ती और नई उचाईयां छूती भूमिका को आज कौन नकार सकता है??

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुसार, “ शिक्षक का स्तर किसी समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक लोकाचार को दर्शाता है…” यह सच ही कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने शिक्षक के स्तर से अधिक ऊपर नहीं जा सकता है.

यह भी एक वास्तविकता है कि भारत सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली नीतियां और योजनायें केवल प्रशिक्षित, कुशल, समर्थ और समर्पित शिक्षकों के प्रयास से ही साकार हो सकती हैं. यदि हमें अपने देश को एक विकासशील से विकसित देश बनाना है तो इसकी पहली शर्त ही 100% साक्षरता दर को प्राप्त करना है और आज हमारे शिक्षक इस दिशा में अपना पुरजोर योगदान दे रहे हैं.

शिक्षक विकास की मजबूत नीव:

हमारे शिक्षक ही एक सुदृढ़ और विकासशील देश की मजबूत नींव हैं. बच्चों के माता-पिता के अलावा शिक्षक ही बच्चों के ज्ञान और जीवन मूल्यों का मुख्य आधार हैं. किसी भी बच्चे/ छात्र और समाज का भविष्य शिक्षकों के हाथ में पूरी तरह सुरक्षित होता है. इसलिये शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता भी कहा जाता है.

एक अच्छे शिक्षक के दायित्व:

आमतौर पर ढाई – तीन वर्ष में ही बालक “प्ले स्कूल” में एडमिशन लेते ही अपने शिक्षक से जुड़ जाते हैं और यह सफर ग्रेजुएशन/ पोस्ट ग्रेजुएशन/ एमफिल और पीएचडी की डिग्री पाने तक चलता है. इतना ही नहीं, अगर किसी छात्र/ छात्रा को प्रोफेशनल ट्रेनिंग चाहिए या नई नौकरी मिलने पर किसी कर्मचारी या ऑफिसर को ट्रेनिंग की आवश्यकता है तो वह ट्रेनिंग भी किसी प्रोफेशनल इंस्ट्रक्टर अर्थात शिक्षक द्वारा ही दी जाती है. ऐसे में बालपन से व्यस्क होने तक छात्र/ छात्राओं के व्यक्तित्व पर अपने शिक्षकों का प्रभाव साफ़ दिखाई देता है. इसलिए यह एक वास्तविकता है कि शिक्षक का दायित्व केवल क्लासरूम तक ही नहीं सिमटता बल्कि यह दायित्व बालकों/ छात्रों के व्यक्तित्व के विकास और चरित्र निर्माण का भी एक अहम हिस्सा होता है.



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