1.

“उन्नीसवीं शताब्दी सामाजिक एवं राष्ट्रीय पुनर्जागरण का युग था।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।

Answer»

लगभग दो सौ वर्षों (1757-1947 ई०) तक भारत में ब्रिटिश शासन रहा। सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में अंग्रेज भारतीयों से बहुत आगे थे। यूरोप में पुनर्जागरण तथा औद्योगिक क्रान्ति ने कला, विज्ञान तथा साहित्य के क्षेत्र में दूरगामी और क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया था। इसलिए जब भारतवासी अंग्रेजों के सम्पर्क में आए तो वे भी पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। पहले तो पश्चिम सभ्यता के सम्पर्क से भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई, फिर धर्म-सुधार आन्दोलनों का जन्म हुआ और फिर विदेशी शासन से मुक्ति पाने हेतु भारत के लोग अंग्रेजों से संघर्ष करने के लिए प्रेरित हुए। भारत पर अंग्रेजों की विजय से भारत का काफी भाग प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अन्तर्गत आ गया।

इससे यह सम्पर्क और दृढ़ हो गया। इसके अतिरिक्त भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रवेश ने भी पश्चिमी विज्ञान, दर्शन, साहित्य और चिन्तन से भारतीयों का परिचय कराया। इसने उन बन्धनों को तोड़ दिया, जिन्होंने पश्चिमी दुनिया के दरवाजे भारत के लिए बन्द किए हुए थे। प्रारम्भ से ही भारतीय समाज एवं संस्कृति, परिवर्तन और निरन्तरता की प्रक्रिया से गुजरती रही है। 19 वीं शताब्दी के दौरान भारत सामाजिक-धार्मिक सुधारों और सांस्कृतिक पुनरुद्धार के एक और चरण से गुजरा। इस समय तक भारतीय यूरोपियनों और उनके माध्यम से उनकी संस्कृति के सम्पर्क में आ चुके थे। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से भारतीयों में राष्ट्रीय व सामाजिक चेतना उत्पन्न हुई, जिसके फलस्वरूप देश में पहले धर्म व सुधार आन्दोलनों का प्रादुर्भाव हुआ।

ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों, विशेष रूप से शिक्षा और धर्म प्रचार ने भी ईसाई धर्म के आन्तरिक सिद्धान्तों की ओर बहुतसे भारतीयों को आकर्षित किया। इससे भारतीय लोगों का जीवन और चिन्तन धीरे-धीरे पश्चिमी संस्कृति और विचारों से प्रभावित हुआ। इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव प्रचलित भारतीय परम्पराओं, विश्वासों और रिवाजों में देखा जा सकता है। अनेक प्रबुद्ध हिन्दुओं ने यह जान लिया कि हिन्दू और ईसाई धर्म बाहरी रूपों में एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी आन्तरिक मूल्यों में एक जैसे हैं।

इंग्लैण्ड में इस समय तक पूर्ण लोकतन्त्र की स्थापना हो चुकी थी। इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ा। 1857 ई० की क्रान्ति के बाद हमारे देश में भी व्यवस्थापिका की स्थापना होने लगी और स्वायत्त शासन विकसित होने लगा। यह संवैधानिक विकास निरन्तर होता रहा और धीरे-धीरे देश लोकतन्त्र की ओर बढ़ता गया। अन्त में, हमारे देश में पूर्ण रूप से लोकतन्त्रीय शासनव्यवस्था स्थापित हो गई।

इस प्रकार, अपने धर्म और सदियों पुरानी संस्कृति की महान् परम्पराओं को छोड़े बिना प्रबुद्ध भारतीयों ने अपने समाज को अन्धविश्वासों से मुक्त कराने के विषय में गम्भीरता से विचार किया। अत: भारतीय इतिहास में 19 वीं शताब्दी महान् मानसिक चिन्तन का युग माना जाता है। इसने अनेक सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलनों को जन्म दिया, जिन्होंने नए भारत के उदय को सम्भव बनाया। इन आन्दोलनों ने भारत के समाज, धर्म, साहित्य और राजनीतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। इसी भावना और इससे प्रभावित विभिन्न प्रयत्नों को हम भारतीय पुनरुद्धार आन्दोलन के नाम से पुकारते हैं।

भारतीय पुनर्जागरण ने यूरोप की भाँति धर्म, समाज, कला, साहित्य आदि को प्रभावित किया। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की श्रेष्ठता, प्रगति तथा पश्चिमी सभ्यता के सामने टिकने का साहस ही भारतीय पुनर्जागरण का आधार था। भारतीय जीवन का चहुंमुखी विकास उसका स्वरूप था तथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक एवं कलात्मक क्षेत्र में नवीन चेतना की उत्पत्ति उसका परिणाम था। आरम्भ में पुनरुद्धार आन्दोलन एक बौद्धिक परिवर्तन था, बाद में वह अनेक सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों का आधार बना और अन्तत: भारतीय जीवन का प्रत्येक अंग इससे अछूता न रहा।



Discussion

No Comment Found