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असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा… यही सब घेरे हुए है आज हमारे जीवन को.

व्यक्ति में एवं समाज में साम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, हिंसा की संकीर्ण कुत्सित भावनाओं व समस्याओं के मूल में उत्तरदायी कारण है मनुष्य का नैतिक और चारित्रिक पतन अर्थात नैतिक मूल्यों का क्षय एवं अवमूल्यन.

नैतिकता का सम्बंध मानवीय अभिवृत्ति से है, इसलिए शिक्षा से इसका महत्त्वपूर्ण अभिन्न व अटूट सम्बंध है. कौशलों व दक्षताओं की अपेक्षा अभिवृत्ति-मूलक प्रवृत्तियों के विकास में पर्यावरणीय घटकों का विशेष योगदान होता है. यदि बच्चों के परिवेश में नैतिकता के तत्त्व पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं तो परिवेश में जिन तत्त्वों की प्रधानता होगी वे जीवन का अंश बन जायेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि मूल्य पढ़ाये नहीं जाते, अधिग्रहीत किये जाते हैं.

देश की सबसे बड़ी शैक्षिक संस्था-राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा उन मूल्यों की एक सूची तैयार की गयी है जो व्यक्ति में नैतिक मूल्यों के परिचायक हो सकते हैं. इस सूची में 84 मूल्यों को सम्मिलित किया गया है.

वास्तव में, नैतिक गुणों की कोई एक पूर्ण सूची तैयार नहीं की जा सकती, तथापि संक्षेप में हम इतना कह सकते हैं कि हम उन गुणों को नैतिक कह सकते हैं जो व्यक्ति के स्वयं के, सर्वांगीण विकास और कल्याण में योगदान देने के साथ-साथ किसी अन्य के विकास और कल्याण में किसी प्रकार की बाधा न पहुंचाए. विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि नैतिक मूल्यों की जननी नैतिकता सद्गुणों का समन्वय मात्र नहीं है, अपितु यह एक व्यापक गुण है जिसका प्रभाव मनुष्य के समस्त क्रिया- कलापों पर होता है और सम्पूर्ण व्यक्तित्व इससे प्रभावित होता है. वास्तव में नैतिक मूल्य/नैतिकता आचरण की संहिता है. हमें इस बात को भली भांति समझना होगा कि नैतिक मूल्य नितांत वैयक्तिक होते हैं. अपने प्रस्फुटन उन्नयन व क्रियान्वय से यह क्रमशः अंतयक्तिक/सामाजिक व सार्वभौमिक होते जाते हैं.



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