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Answer» वास्तुशास्त्र ज्योतिषशास्त्र का ही एक अविभाज्य अंग है, जिसकी गणना, महत्ता और प्रशंसा अनेक देशों में भी स्वीकार्य हुई है । - प्राचीन भारत में ब्रह्मा, नारद, बृहस्पति, भृगु, वशिष्ट, विश्वकर्मा जैसे विद्वानों ने वास्तुशास्त्र में योगदान दिया था । .
- वास्तुशास्त्र में रहने के स्थान, मंदिर, महल, अश्वशाला, किला, शस्त्रागार, नगर आदि की रचना किस तरह करनी, किस दिशा में करनी इसका वर्णन किया गया है । बृहदसंहिता में भी वास्तुशास्त्र का उल्लेख है ।
- पंदरहवी सदी में मेवाड़ के राणा कुंभा ने पहले के प्रकाशनों में सुधार करवाकर वास्तुशास्त्र का पुनरुद्धार करवाया ।
- वास्तुशास्त्र को 8 भागों में बाँटनेवाले देवों के प्रथम स्थापति विश्वकर्मा थे ।
- वास्तुशास्त्र में स्थान की पसंदगी, विविध आकार, रचना, कद, वस्तुओं की जमावट, देवमंदिर, ब्रह्मस्थान, भोजनकक्ष, शयनरखंड आदि विविध स्थानों की जानकारी दी गयी है ।
- वास्तुशास्त्र की दृष्टि में अब परिवर्तन आया है, जबकि अब उसे विदेशों में भी स्वीकृति मिल रही है ।
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