InterviewSolution
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वैयक्तिक विघटन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख स्वरूपों की विवेचना कीजिए।यावैयक्तिक विघटन किसे कहते हैं? इसका प्रभाव लिखिए |
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Answer» वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के जीवन संगठन का अव्यवस्थित होना ही वैयक्तिक विघटन है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के व्यक्तित्व का समाज की मान्यताओं के अनुरूप विकास नहीं हो पाता है। इस प्रकार का असन्तुलित व्यक्तित्व ही वैयक्तिक विघटन के लिए उत्तर:दायी है। वैयक्तिक विघटन वह स्थिति है जिसमें असन्तुलित व्यक्तित्व के कारण व्यक्ति समाज द्वारा मान्य व्यवहार-प्रतिमानों के विपरीत आचरण करता है। वैयक्तिक विघटन को परिभाषित करते हुए इलियट और मैरिल ने लिखा है, “समाज के नियमों एवं समाज के साथ तादात्मीकरण न होना ही वैयक्तिक विघटन है।” माउरर के अनुसार, “सभी वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के उन आचरणों का प्रतिनिधित्व करता है, जो संस्कृति द्वारा स्वीकृत आदर्श प्रतिमान से इतना अधिक विचलित होते हैं कि उन्हें सामाजिक दृष्टि से अमान्य माना जाता है।” लेमर्ट ने बताया कि वैयक्तिक विघटन वह दशा या प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी मुख्य भूमिका के चारों ओर अपने व्यवहार को सुस्थिर नहीं कर पाता है। उसकी भूमिका के चुनाव की प्रक्रिया में संघर्ष या भ्रम बना रहता है। ऐसा विघटन कुछ समय के लिए भी हो सकता है और निरन्तर भी बना रह सकता है। उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ⦁ वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के व्यक्तित्व की असन्तुलित अवस्था है, वैयक्तिक विघटन सम्बन्धित स्वरूप-यहाँ हम वैयक्तिक विघटन के उन स्वरूपों पर ही विचार करेंगे जो प्रमुखतः सामाजिक कारकों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। जब व्यक्ति के जीवनसंगठन का विघटन होता है तो उसका प्रकटीकरण बाल-अपराध, अपराध, यौन-अपराध, मद्यपान, पागलपन और आत्महत्या के रूप में होता है। इलियट और मैरिल ने बताया है कि वैयक्तिक विघटने के स्वरूप, एक अथवा दूसरे प्रकार से, व्यक्तियों के सन्तोषप्रद जीवन-संगठन को प्राप्त करने की असमर्थता को व्यक्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति अनेक कारणों से समूह की अपेक्षाओं के अनुरूप भूमिकाएँ अदा करने में असमर्थ रहते हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन-संगठन असन्तुलित हो जाता है और वैयक्तिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। जब परिस्थितियाँ व्यक्तियों को उन कार्यों को करने को बाध्य कर देती हैं जिनके लिए वे शारीरिक एवं स्वभावगत रूप से अयोग्य हैं। तो ऐसी स्थिति में उनके व्यक्तित्व विघटित हो जाते हैं। 1. सृजनात्मक व्यक्तित्व-प्रायः व्यक्ति की अति-संवेदनशीलता उसे ऐसे कार्य करने को प्रोत्साहित करती है, जो सामान्य लोगों को स्वीकार नहीं होते। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की सृजनात्मकता उसके वैयक्तिक विघटन का कारण बन जाती है। जब इस प्रकार के व्यक्तियों को समाज द्वारा किसी प्रकार की मान्यता प्राप्त नहीं होती तो अति संवेदनशीलता के कारण इनके अहम् को चोट लगती है, गहरा मानसिक आघात लगता है तथा ये अपने आप को अकेला, उदासीन व निराश पाते हैं। इनमें अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों को वैयक्तिक जीवन विघटित हो जाता है। इन लोगों में शिक्षाशास्त्री, साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, लेखक और समाज-सुधारक प्रमुख हैं। इनको तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है- ⦁ सुधारक, 2. व्याधिकीय व्यक्तित्व-व्याधिकीय व्यक्तित्व के अन्तर्गत उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है जो शारीरिक दुर्बलताओं, मानसिक कमियों या दोषों अथवा स्नायविक विचार के कारण वैयक्तिक विघटने का शिकार बनते हैं। शारीरिक दोषों; जैसे-अंग-भंग, अन्धेपन, बहरेपन, लंगड़ेपन के कारण कई बार व्यक्ति अन्य लोगों के साथ सहजभाव से अनुकूलन नहीं कर पाता। इस दशा में उसे अन्य लोगों से प्रेम और स्नेह नहीं मिल पाता तथा वह मानसिक असुरक्षा अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास रुक जाता है तथा वह हीन-भावना से ग्रसित हो जाता है। इस दशा में वह समाज के आदर्श-प्रतिमानों के विपरीत आचरण करने लगता है तथा वह समाज-विरोधी कार्य करने से भी नहीं चूकता। परिणामस्वरूप उसका वैयक्तिक विघटन हो जाता है। |
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