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विदेशियों और बहिष्कार आंदोलन के विकास की जड़े बताइए​

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स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन सरकार द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय के विरोधस्वरूप चलाया गया था तथा यह बंग-भंग का ही प्रतिफल था।

बंगाल विभाजन

दिसम्बर 1903 में अंग्रेज सरकार ने बंगाल विभाजन की सार्वजनिक घोषणा की। इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारू रूप से संचालन कठिन हो गया है। यद्यपि कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था किंतु अंग्रेजों की वास्तविक मंशा कुछ और ही थी। उनका मुख्य उद्देश्य बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का सबसे प्रमुख केंद्र था।

बंगाल विभाजन के तहत बंगालियों को प्रशासनिक सुविधा के लिये दो तरह से विभाजित कर दिया गया-

भाषा के आधार पर- (इससे बंगाली भाषा-भाषी बंगाल में ही अल्पसंख्यक बन गये, क्येांकि 1 करोड़ 70 लाख लोग बंगाली भाषा बोलते थे, जबकि हिन्दी एवं उड़िया बोलने वालों की संख्या 3 करोड़ 70 लाख थी)

धर्म के आधार पर- क्योंकि पश्चिमी बंगाल हिन्दू बहुसंख्यक क्षेत्र था, जहां हिन्दुओं की संख्या कुल 5 करोड़ 40 लाख में से 4 करोड़ 20 लाख थी तथा पूर्वी बंगाल मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र था, जहां कुल आबादी 3 करोड़ 10 लाख में से मुसलमानों की आबादी 1 करोड़ 80 लाख थी। मुसलमानों के प्रति प्यार दिखाते हुये कर्जन ने कहा कि ढाका नये मुस्लिम बहुल प्रांत (पूर्वी बंगाल) की राजधानी बन सकता है, क्योंकि इससे मुसलमानों में एकता बढ़ेगी, जो कि मुगल शासकों के समय उनमें पायी जाती थी। इस प्रकार बंगाल विभाजन के निर्णय से स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज, कांग्रेस एवं स्वतंत्रता आन्दोलन को दुर्बल बनाने के लिए मुस्लिम सम्प्रदायवाद को उभारना चाहते थे।

स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन में आंदोलनकारियों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई तथा अंग्रेज सरकार के समक्ष अपना विरोध प्रकट किया। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिये दमन का सहारा लिया। फलतः सरकारी दमन के विरोध में उग्रवादी गतिविधियां प्रारंभ हो गयीं।

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