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विलोम का चरित्र मोहन राकेश की एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि है’ कथन के आधार पर विलोम की चारित्रिक-विशेषताएँ लिखिए।

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मोहन राकेश ने अपने ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में विलोम के रूप में एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि की है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. एकांगी प्रेम-विलोम भी कालिदास की तरह एक कवि है और मल्लिका के प्रति आसक्त है। वह उससे एकांगी प्रेम करता है। वह इस इकतरफा प्रेम को अंत तक खींचता चला जाता है। परंतु मल्लिका की ओर से उसे उपेक्षा, उदासीनता व तिरस्कार ही मिलता है। वह कालिदास को उस तिरस्कार का एकमात्र कारण समझता है। इसीलिए मल्लिका के विषय में कहता है”वह नहीं चाहती कि मैं उस घर में आऊँ , क्योंकि कालिदास नहीं चाहता और कालिदास क्यों नहीं चाहता? क्योंकि मेरी आँखों में उसे अपने हृदय का सत्य झांकता दिखाई देता है। उसे उलझन होती है।

“वह कालिदास से उलझता हुआ एक बार इस तथ्य को स्वीकार भी करता है कि मल्लिका उसे न चाह कर कालिदास को चाहती है-“विलोम क्या है? एक असफल कालिदास …. और कालिदास? एक सफल विलोम ……..”

तथापि विलोम हमें कहीं भी मल्लिका से दुराग्रह करता दिखाई नहीं देता। भले ही उसका प्रेम एकांगी है, किंतु वह अपनी प्रेमिका का अहित कभी नहीं चाहता। वह कालिदास का भी अहित नहीं चाहता। वह कालिदास को बधाई देता है, परंतु स्वर व्यंग्यात्मक रहता है।

2. तर्कशक्ति-विलोम के विषय में कुछ आलोचक भले ही उसे खलनायक की कोटि में रखकर उसके महत्त्व को कम कर देते हैं परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। वह नाटक में एक तर्कशक्ति के रूप में उभरता है। वह एक व्यवहार-कुशल युवक है। उसके तर्कों में उपयोगिता और व्यावहारिक दृष्टि पाई जाती है। एक आलोचक का मत है

“विलोम के तर्कों में ही नहीं, उसकी पूरी जीवन-दृष्टि में एक ऐसी आवश्यकता और अनिवार्यता है कि उसकी गिनती हिंदी नाटक के कुछ अविस्मरणीय पात्रों में होगी। कई प्रकार से विलोम मोहन राकेश की एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि है।”

3. विचार पक्ष-विलोम में विचार शक्ति की कोई कमी नहीं है। वह अपनी भावनाओं से ऊपर विचार को महत्त्व देता है। इसीलिए उसमें परामर्श और निर्णय की सामर्थ्य है। जब कालिदास के उज्जयिनी जाने का प्रसंग आता है तो वह अपना विचार पक्ष अंबिका के सामने प्रस्तुत करते हुए मल्लिका के हित को केंद्र में रखकर कहता है-

“मैं समझता हूँ उसके जाने के पूर्व ही उसका और मल्लिका का विवाह हो जाना चाहिए …………………………. कालिदास उज्जयिनी चला जाएगा। और मल्लिका, जिसका नाम उसके कारण सारे प्रांतर में अपवाद का विषय बना है, पीछे यहाँ पड़ी रहेगी।” वह कालिदास से भी सीधा यही प्रश्न करता है कि वह यह बता कर जाए कि मल्लिका के साथ वह विवाह कब करेगा? किंतु कालिदास इस प्रश्न पर मौन रहता है।

4. यथार्थवादी-मोहन राकेश ने विलोम का चरित्र यथार्थ के कठिन धरातल पर खड़ा किया है। उसे स्थितियों की पूरी-पूरी समझ है। यही कारण है कि वह कालिदास के उज्जयिनी जाने से पहले मल्लिका के विषय में कोई ठोस निर्णय लेने का प्रस्ताव रखता है। वह अपनी आशंका प्रकट करते हुए कहता है”राजधानी के वैभव में जाकर ग्राम प्रांतर को भूल तो नहीं जाओगे? सुना है वहाँ जाकर व्यक्ति बहुत व्यस्त हो जाता है। वहाँ के जीवन के कई तरह के आकर्षण हैं …………….”रंगशालाएँ हैं, मदिरालय और तरह-तरह की विलास भूमियाँ ……………” आगे की घटनाओं को देखते हुए विलोम के ये शब्द कितने सच सिद्ध होते है।

5. मूल्य-चेतना-पूरे नाटक में विलोम एक ऐसा पात्र है जिसे विभिन्न जीवन-मूल्यों के प्रति गंभीर चेतना से संपन्न पाया जा सकता है। उसे सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मूल्यों की अच्छी समझ है। वह प्रेम संबंधी मूल्यों को भी पहचानता है। इसीलिए जब कालिदास काश्मीर जाते हुए मार्ग में मल्लिका से मिलने नहीं आता तो वह उससे संवेदना के रूप में इस प्रकार कहता है-उसे आना चाहिए। व्यक्ति किसी संबंध-सूत्र को ऐसे नहीं तोड़ता और विशेष रूप से वह, जिसे एक कवि का भावुक हृदय प्राप्त हो। तुम क्या सोचती हो मल्लिका? उसे एक बार आना चाहिए।”

6. अनचाहा अतिथि-विलोम स्वयं को अनचाहा अतिथि बताता है। वास्तव में वह मल्लिका की मानसिकता के प्रसंग में ऐसा कहता है। उसे मल्लिका का प्रेम पाने की आतुरता थी परंतु वह उसे सदैव एक अनचाहे अतिथि की तरह दुत्कारती रहती है। वह एक बार कहता भी है-“अनचाहा अतिथि संभवतः फिर कभी आ पहुँचे।” परंतु वह अनचाहा अतिथि स्वयं नहीं आता अपितु स्वयं वही मल्लिका उसे बुलाकर लाती है। इस अनचाहे अतिथि ने उसे वह सब कुछ दिया जो वह वास्तव में कालिदास से चाहती थी। इस प्रकार विलोम एक सशक्त यथार्थवादी, व्यावहारिक और जीवन-मूल्यों के प्रति जागरूक पात्र के रूप में उभरता है।



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