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विष कितने प्रकार के होते हैं? विषपान किए व्यक्ति का सामान्य उपचार आप किस प्रकार करेंगी?यायदि किसी बच्चे ने कोई विषैला पदार्थ खा लिया है, तो उसे किस प्रकार का प्रतिकारक पदार्थ दिया जाएगा? उदाहरण दीजिए। क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?याटिप्पणी लिखिए-विष कितने प्रकार के होते हैं?

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 विष के प्रकार

सामान्यतः शरीर को हानि पहुँचाने वाले पदार्थ विष कहलाते हैं। ये पदार्थ प्रायः मुँह के द्वारा अथवा विषैले जीव-जन्तुओं के काटने पर शरीर में अन्दर प्रवेश करते हैं। विषपान करने पर शरीर में प्रवेश करने वाले विषैले पदार्थों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) जलन उत्पन्न करने वाले विष:
ये विष शरीर के जिस भाग में प्रवेश करते हैं उसे या तो जला देते हैं अथवा उसमें जलन उत्पन्न करते हैं। कास्टिक सोडा, अमोनिया, कार्बोलिक एसिड तथा खनिज अम्ल आदि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं। इस प्रकार के विष से प्रायः जीभ, गले तथा मुखगुहा में भयंकर जलन होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई का अनुभव होता है।

(2) उदर अथवा आहारनाल को हानि पहुँचाने वाले विष:
इस प्रकार के विष उदर में पहुंचकर भयंकर उथल-पुथल पैदा करते हैं। ये कण्ठ, ग्रासनली, आमाशय एवं आँतों में जलन एवं दर्द उत्पन्न करते हैं। इनके शिकार व्यक्ति उदरशूल अनुभव करते हैं तथा उन्हें मतली आने लगती है। इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख विष हैं संखिया, पारा, पिसा हुआ शीशा तथा विषैले एवं सड़े-गले खाद्य पदार्थ।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विष:
इस प्रकार के विष को खाने पर नींद आने लगती है जो कि विष की अधिकता होने पर प्रगाढ़ निद्रा अथवा संज्ञा-शून्यता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार के विष का अत्यधिक सेवन करने से कई बार रोगियों की मृत्यु भी हो जाती है। अफीम, मॉर्फिन तथा डाइजीपाम (कम्पोज, वैलियम आदि) इत्यादि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विष:
इनका प्रभाव प्रायः स्नायुमण्डल अथवा विभिन्न नाड़ियों पर होता है; जिसके फलस्वरूप नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, मस्तिष्क चेतना शून्य हो सकता है अथवा शरीर के विभिन्न अंगों में पक्षाघात हो सकता है। भाँग, धतूरा, क्लोरोफॉर्म तथा मदिरा इसी प्रकार के प्रमुख विष हैं।

विषपान करने पर उपचार

विषपाने एक गम्भीर दुर्घटना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिदिन अनेक व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हुए अकाल ही मृत्यु की गोद में चले जाते हैं। इस समस्या का समाधान करना सम्भव है, यदि पीड़ित व्यक्ति को तत्काल चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो जाए तथा कुछ सुरक्षात्मक उपायों का कठोरतापूर्वक पालन किया जाए। चिकित्सा सहायता सदैव समय पर उपलब्ध होनी सम्भव नहीं है; अतः विषपान करने वाले व्यक्तियों के सामान्य उपचार के उपायों की जानकारी प्राप्त करना अति आवश्यक

() सुरक्षात्मक उपाय:
कई बार अनेक व्यक्ति (विशेष रूप से बच्चे) अज्ञानतावश अथवा नादानी में विषपान का शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को निम्नलिखित उपायों का कठोरतापूर्वक पालन कर सहज ही टाला जा सकता है

  1. घर में प्रयुक्त होने वाले सभी क्षारों एवं अम्लों को नामांकित कर यथास्थान रखें। ध्यान रहे कि ये स्थान बच्चों की पहुँच से सदैव दूर हों।
  2. पुरानी तथा प्रयोग में न आने वाली औषधियों को घर में न रखें।
  3. सभी औषधियों को उनकी मूल शीशी अथवा डिब्बी में रखें।
  4. कभी भी अन्धकार में कोई औषधि प्रयोग न करें।
  5. चिकित्सक के पूर्व परामर्श के बिना कोई जटिल औषधि न प्रयोग करे।
  6. पेण्ट वाले पदार्थ प्रायः विषैले होते हैं; अत: इनका प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।
  7. कीटाणुनाशक (स्प्रिट व डिटॉल, फिनाइल) आदि तथा कीटनाशक (फ्लिट व बेगौन स्प्रे आदि) पदार्थ विषैले होते हैं। इन्हें सावधानीपूर्वक प्रयोग करें तथा प्रयोग करते समय कम-से-कम श्वालें।
  8. खाना पकाने से पूर्व दाल, शाक-सब्जियों एवं फलों को अच्छी प्रकार से धोएँ ताकि ये पूर्णरूपसे कीटनाशक रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से मुक्त हो जायें।
  9. बच्चों को समय-समय पर प्रेमपूर्वक उपर्युक्त बातों की जानकारी दें। 

() प्राथमिक चिकित्सा सहायता:
योग्य चिकित्सक अथवा अस्पताल से चिकित्सा सहायता प्रायः विलम्ब से प्राप्त होती है, जबकि विषपान किए व्यक्ति का उपचार तत्काल होना आवश्यक है। अतः विषपान सम्बन्धी प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए

  1. रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष का प्रकार ज्ञात हो सके तथा उसके अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2. विष का प्रभाव कम करने के लिए रोगी को वमन कराकर उसके उदर से विष दूर करने का प्रयास करें।
  3. यदि रोगी क्षारक अथवा अम्लीय विष से पीड़ित है, तो वमन न कराएँ। इस प्रकार के रोगियों को विष-प्रतिरोधक देना ही उचित रहता है।
  4. क्षारीय विष से पीड़ित व्यक्ति को नींबू का रस अथवा सिरका पिलाना लाभप्रद रहता है। अम्लीय विष से पीड़ित व्यक्तियों को चूने का पानी, खड़िया, मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना उत्तम रहता है।
  5. आस्फोटक विष के उपचार के लिए रोगी को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए। कई बार वमन कराने के बाद उसे अरण्डी का तेल पिलाना चाहिए।
  6. निद्रा उत्पन्न करने वाले विष के उपचार में रोगी को जगाए रखने का प्रयास करें। वमन कराने के उपरान्त उसे तेज चाय अथवा कॉफी पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।
  7. रोगी के हाथ व पैर सेंकते रहना चाहिए। रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना लाभप्रद रहता है।
  8. आवश्यकता पड़ने पर रोगी को कृत्रिम उपायों से श्वास दिलाने का प्रयास करना चाहिए।
  9. रोगी को अस्पताल भिजवाने का तुरन्त प्रबन्ध करें। रोगी के साथ उसके वमन अथवा लिए गए विष का नमूना अवश्य ले जाएँ। इससे विष के सम्बन्ध में शीघ्र जानकारी प्राप्त होने से उपयुक्त चिकित्सा तत्काल आरम्भ हो सकती है।

() सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थों का उपयोग:
विषपान किए व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त विष एवं उसके प्रतिरोधक पदार्थ की जानकारी होने से विषपान के रोगी का उपचार सहज ही सम्भव है। सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थ प्रायः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) जलन पैदा करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

() क्षारीय विष:
क्षारीय विषों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए अम्लों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण-नींबू का रस एवं सिरका।
() अम्लीय विष:
इनके प्रतिकारक पदार्थ क्षारीय होते हैं। गन्धक, शोरे व नमक के अम्लों को प्रभावहीन करने के लिए

  1. चूना या खड़िया मिट्टी पानी में मिलाकर दें।
  2. जैतून का तेल पानी में मिलाकर दें।
  3. पर्याप्त मात्रा में दूध दें।

(2) आहार नाल को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

1.संखियायह एक भयानक विष है। टैनिक अम्ल के प्रयोग द्वारा इस विष के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

2.गन्धककार्बोनेट एवं मैग्नीशिया गन्धक के विष को प्रभावहीन करने के लिए उत्तम रासायनिक पदार्थ हैं।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. अफीम: इस विष से पीड़ित व्यक्ति को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए।
  2. निद्रा की गोलियाँ: इनसे प्रभावित व्यक्ति का उपचार अफीम के समान ही किया जाता है। रोगी को नमक के गरम पानी द्वारा वमन कराया जाता है तथा उसके उदर की सफाई की जाती है।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. तम्बाकू: इसमें निकोटीन नामक विष होता है। गरम पानी में नमक डालकर रोगी को वमन करायें तथा तेज चाय व कॉफी पीने के लिए दें।
  2. मदिरा: मदिरा के प्रभाव को नष्ट करने के लिए रोगी को वमन कराएँ तथा उसके उदर की पानी द्वारा सफाई करें। नींबू व नमक मिला गरम पानी पिलाने से लाभ होता है।
  3. भाँग एवं गाँजा: पीड़ित व्यक्ति को वमन कराकर खट्टी वस्तुएँ खिलानी चाहिए। यदि रोगी होश में है, तो उसे गरम दूध पिलाया जा सकता है।
  4. क्लोरोफॉर्म: इस विष का प्रतिकारक है एमाइल नाइट्राइट जो कि इसके प्रभाव को कम करता है।
  5. धतूरा: धतूरे के बीजों में घातक विष होता है। इस विष से पीड़ित व्यक्ति को होश में लाकर वमने कराना चाहिए। इसके बाद उसे गर्म दूध में एक चम्मच ब्राण्डी मिलाकर दी जा सकती है।


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