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व्यापार चक्र की परिभाषा देकर उसके आधार पर व्यापार चक्र के महत्त्वपूर्ण सोपानों की चर्चा कीजिए । |
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Answer» अर्थतंत्र में चक्रीय परिवर्तन निश्चित न होने पर भी पहचान सकते हैं । व्यापार चक्र ऐसे चक्रीय परिवर्तन होते हैं । व्यापार चक्र की अलग-अलग अर्थशास्त्रीयों ने अलग-अलग परिभाषा दी है : हेबलर के अनुसार : “अर्थतंत्र में क्रमश: आनेवाले अच्छे और बुरे आर्थिक परिवर्तन अर्थात् व्यापार चक्र ।” होट्रे के अनुसार : “व्यापार के अच्छे और बुरे सोपान क्रमश: आते हैं वह व्यापार चक्र है ।” (1) तेजी : व्यापार चक्र के इस सोपान में व्यापार प्रवृत्ति उच्च स्तर पर उपयोग और माँग बढ़ने के कारण अर्थतंत्र में लाभ के अवसर अधिक होते हैं, इसलिए पूँजीनिवेश और रोजगारी की दर ऊँची होती है । इस परिस्थिति को तेजी कहते हैं । (2) मंदी : माँग में कमी पूर्ति को कम करता है । कीमत कम होती है और लाभ कम होता है । लाभ कम होने से पूंजी निवेश और रोजगारी में कमी होने लगती है । अर्थतंत्र में अधिक कीमत घटने की आशा से माँग भी स्थिर हो जाती है । इस परिस्थिति को मंदी कहते हैं । (3) कमी : लाभ की अपेक्षा से पूँजीनिवेश घटता जाता है । साधनों की माँग अधिक होने से कीमत बढ़ने लगती हैं । इसलिए उत्पादन खर्च में वृद्धि होने से लाभ कम होने लगता है । दूसरी ओर लोगों का उपभोग (उपयोग) घटते दर से बढ़ते अर्थतंत्र में नरमी देखने को मिलती है । माँग नीची होती है । उपयोग कम होता है और नया पूँजीनिवेश आकर्षित नहीं होते हैं । (4) सुधार : अर्थतंत्र में व्यापक निराशा में से स्वयं ही क्रय के पक्ष में वातावरण सर्जित होता है । माँग बढ़ने से लाभ की आशा सर्जित होती है । अनुपयोगी साधनों का उपयोग होने से आय बढ़ती है । आय बढ़ने से खर्च में वृद्धि होती है और खर्च माँग पर प्रभाव डालने से लाभ सर्जित होता है । इस परिस्थिति के कारण अर्थतंत्र सुधार की ओर गति करता है । |
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