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‘ये पन्ने अपने हाथों में बनाकर सिये थे’ – उक्त कथन किसका है और किससे कहा गया है? इन पन्नों के बारे में वक्ता तथा श्रोता के बीच क्या बात-चीत हुई? उनकी बात-चीत में छिपे भाव को स्पष्ट कीजिए।

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प्रस्तुत कथन प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश द्वारा रचित ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में से उदधृत है। यह कथन नाटक की नायिका और संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालिदास की प्रेमिका मल्लिका द्वारा कहे गए एक संवाद का अनुभाग है।

इस संवाद की पृष्ठभूमि में निराश मल्लिका के जीवन की करुण कथा है। यह वहाँ का संदर्भ है जब निराश मल्लिका अपने-आप से बातें करने लगती है। वह कालिदास के संबंध में सोचती है तो कभी अपनी बच्ची के संबंध में। वह कालिदास के ग्रंथों को उठाती है और उसके बारे में चर्चित कथाओं को दुहराती है। “वही आषाढ़ का दिन है। उसी प्रकार मेघ गरज रहे हैं। वैसे ही वर्षा हो रही है। वही मैं हूँ। उसी घर में हूँ परंतु फिर भी…” उस समय राजकीय वस्त्रों में किंतु क्षत-विक्षत अवस्था में कालिदास वहाँ प्रवेश करता है। दोनों एक-दूसरे को देखते हैं और स्वीकार करते हैं कि दोनों की अपनी और एक-दूसरे की पहचान खो गई है। कालिदास मल्लिका के कमरे में बदली हुई व्यवस्था की चर्चा करता है। वह कालिदास से पूछती है कि उसने काश्मीर छोड़ दिया है? वह कहता है “हाँ”, क्योंकि सत्ता और प्रभुता का मोह छूट गया है, आज मैं उस सब से मुक्त हूँ, जो वर्षों से मुझे कसकता रहा है। काश्मीर में लोग समझते हैं कि मैंने संन्यास ले लिया है, परंतु मैंने संन्यास नहीं लिया। मैं केवल मातृगुप्त के कलेवर से मुक्त हुआ हूँ , जिससे पुनः कालिदास के कलेवर में जी सकूँ।”

कालिदास मल्लिका से अपने प्रेम और आकर्षण की यादों की चर्चा करता है और चाहता है कि जीवन को शुरू से आरंभ किया जाए। तभी द्वार खटखटाने की आवाज़ आती है। कालिदास को स्वर कुछ जानापहचाना सा लगता है परंतु मल्लिका टाल देती है। कालिदास अपने मन की बातें बताता है। वह काश्मीर जाना अपनी ग़लती मानता है। वह मातृभूमि के प्रति अपने स्नेह की बात भी करता है। वह अपनी भिन्नभिन्न रचनाओं की मूल प्रेरणा मल्लिका को ही बताता है। तभी कालिदास की दृष्टि आसन पर रखे कोरे पृष्ठों पर पड़ती है। मल्लिका उसे बताती है कि “ये पत्र मैंने अपने हाथों से बना कर सिए थे। सोचा था तुम राजधानी से आओगे तो मैं तुम्हें यह दूंगी। कहूँगी, इन पृष्ठों पर अपने सबसे बड़े महाकाव्य की रचना करना।” कालिदास आँसुओं से भीगे उस कोरे महाकाव्य को देखता है और कहता है “इस पर तो पहले ही बहुत कुछ लिखा हुआ है ………………………… इन पृष्ठों पर एक महाकाव्य की रचना हो चुकी है ………………………….. अनंत सर्गों के एक महाकाव्य की।” वह एक बार फिर आरंभ से जीवन शुरू करने को कहता है। इतने में अंदर से बच्ची के रोने का स्वर आता है। यह कहती है “यह मेरा वर्तमान है।’ वह बच्ची को लेने अंदर जाती है। इस प्रकार इस संवाद में मल्लिका के कालिदास के प्रति उत्कृष्ट प्रेम, निस्वार्थ भावना व उज्ज्वल भविष्य की चिंता व्यक्त हुई है। उसने कालिदास को पाने के लिए प्रेम नहीं किया था। उसकी त्याग-भावना तथा उससे जुड़ी पीड़ा ही पूरे नाटक का केंद्रबिंदु है।



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