1.

(1) और भाँति कुंजन में गुजरत भीर भौर,औरे डौर झौरन पैं, बौरन के हवै गये।कहैं पद्माकर सुऔरे भाँति गलियानि,yा छलिया छबीले छैल और छबि छ्वै गये।औरै भाँति बिहज-समाज में आवाज होति,ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गये।औरै रस औरै रीति औरै राग और रंग,और तन और मन औरै बन वै गये।।​

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