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14. ईर्ष्या को मनुष्य का चारित्रिक दोष क्यों माना गया है? क्या ईष्या का कोई सकारात्मक पक्ष भी है?विस्तार से लिखिए।​

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¿ ईर्ष्या को मनुष्य का चारित्रिक दोष क्यों माना गया है? क्या ईष्या का कोई सकारात्मक पक्ष भी है?  विस्तार से लिखिए।

✎... ईर्ष्या को मनीष का चारित्रिक दोष इसलिए कहा गया है, क्योंकि ईर्ष्या की भावना रखने पर मनुष्य अपने ईर्ष्या के जाल में उलझ कर रह जाता है। उसके पास जो सुख है, वह उसे कम दिखाई देने लगता है और दूसरों का छोटा सा सुख भी उसे बहुत अधिक दिखाई पड़ने लगता है। ईर्ष्या की भावना के कारण वह स्वयं को उसकी आग में जलाए रखता है, जिस कारण उसके जीवन के सहज आनंद में बाधा पड़ती है।

ईर्ष्या का सकारात्मक पक्ष यह है कि किसी से ईर्ष्या करने के कारण मनुष्य अपने अंदर की कमियों को दूर करके अपने सामने वाले प्रतिद्वंदी के समान बनने की प्रेरणा लेता है। वह अपने किसी प्रतिद्वंदी से ईर्ष्या की भावना के कारण उसके जैसा ही बनने की चेष्टा करता है, जिससे वह भी अपनी कमियों को दूर कर अपने गुणों को विकसित कर पाता है। उसके अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होती है जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।  

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