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18पंच परमेश्वरजम्मन शेख और अलग चौधरी बहत पुराने मित्र थे। उनकी मित्रता तब से चली आ रही था, जब व बालक था एवंखाना, इकट्ठ खलना और इकट्ठे ही पढना। दोनों को एक-दसरे पर इतना विश्वास था कि ताथ औरसमय एक-दूसर का अपना घर-बार साँप जाते थे। हिंद और मसलमान होते हए भी उनक बाच धर्म कीदीवार नहीं थीउम्मन शख का एक बूढ़ी मौसी थी। जुम्मन शेख के अलावा उसका कोई नहीं था। उसके पास थोडी-सी जाथी। जुम्मन शेख ने चालाकी से वह ज़मीन अपने नाम करवा ली और वादा किया कि जब तक वह जिदा है वह उसखिलाता-पहनाता रहेगा। जब तक ज़मीन उसके नाम न हो गई तब तक मौसी का खूब आदर-सत्कार हुआ, लेकिनजब जमीन जुम्मन शेख के नाम हो गई, सारा आदर धरा-का-धरा रह गया। जुम्मन की पत्नी करीमन उस राटियों केसाथ गालियाँ भी खूब देती। जुम्मन पत्नी को कुछ न कहता। वह भी चाहता था कि बुढ़िया से जल्दी पीछा छूटे। इसरोज-रोज़ की कलह से ऊबकर मौसी ने जुम्मन से कहा, "बेटा मुझे महीने में कुछ रुपया दे दिया करो, में अपनाखाना अलग पका लिया करूंगी।"___ जुम्मन ने पैसा देने से साफ मना कर दिया। मौसी ने उसे पंचायत की धमकी दी। वह बोला, "हाँ-हाँ पंचायतकरा लो। फैसला हो जाए। मुझे भी रात-दिन की खटपट पसंद नहीं।"​

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I THINK YAHAN ...tab... jummman me paise dene see saaf MANA Kar DIYA ..hoga..



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