 
                 
                InterviewSolution
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    				| 1. | आधार पर कोई मद नहा क )प्रासेविधानदाय प्रदन्त मूल औद्यमार की व्यारव्या करे | 
| Answer» EXPLANATION:जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं, सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं। दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद — जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई, दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई। पथ के पहचाने छूट गए, पर साथ-साथ चल रही याद — जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब सूनी हुई डगर? मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या, राही मर लेकिन राह अमर। इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गए स्वाद — जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अन्तर? कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर! आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गए व्यथा का जो प्रसाद — जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद। | |