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अब अश्रु दिखलाओ नहीं अब हाथ फैला ओ नहीं कविता का अर्थ बताएं​

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अब अश्रु दिखलाओ नही हाथ फहलाओ नही’ ये पंक्तिया किसी कविता का शीर्षक नही हैं, बल्कि ये पंक्तियां जिस कविता की हैं, उसका शीर्षक है, “मानव बनो”।

संदर्भ — “मानव बनो” कविता ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ द्वारा रचित एक कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मानव को स्वयं को पहचानने और कर्मठता से जीने के लिये प्रेरित किया है। इस कविता का भावार्थ इस प्रकार है।

भावार्थ — कवि कहता है कि अगर प्यार करना कोई भूल है, किसी की खुशामद करना अगर गलता है,  तो मानव की सबसे बड़ी भूल है कि किसी की उम्मीद में बैठना। किसी की आस में रहना।  किसी कार्य की पूर्ति के लिये किसी के आसरे बैठना।

कवि का कहता है कि किसी कार्य की उम्मीद किसी से लगाना सच्चे मानव की पहचान नहीं है। सच्चे मानव की सही पहचान यह है कि वह अपने दम पर सारे कार्य करें। कवि कहता है कि रो-रोकर दिखाना यानि बात-बात पर अपने दुखों का रोना रोना, किसी के आगे हाथ फैलाना सच्चे और कर्मठ मानव का कार्य नहीं है।

कर्मठ मानव वो होता है जो अपनी कर्मठता से इस जगत में हलचल मचा दे। हर समय हाय-हाय करते रहना और हमेशा अपने दुखों का रोना रोते रहना मानव को शोभा नहीं देता बल्कि उसे आंसू बहाने से बेहतर यह कि वह मेहनत करे परिश्रम करें और अपने दम पर अपने सारे कार्यों की सिद्धि करके रहे।

कवि कहता है कि कभी भी किसी बात का अफसोस मत करो, कुछ गलती हो जाये तो उससे सबक लेकर आगे बढ़ों। कभी किसी से ईर्ष्या मत करो, आपके अंदर जो आग जल रही है, उस आग को जलते रहने दो। उसको अपने लक्ष्य की पूर्ति का माध्यम बनाओ। आप मानव हो तो स्वयं को पहचानो। कर्मशील बनो, यही मानव की सच्ची पहचान है।



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